श्री भागवत दर्शन भागवती कथा भाग - 81 | Shri Bhagawat Darshan Bhagavati Katha Bhag - 81

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Shri Bhagawat Darshan Bhagavati Katha Bhag - 81  by श्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी - Shri Prabhudutt Brahmachari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गीता साहदात्म्य (१७) केवसेन हि भावेन गोप्यो गायों नगा सगाः | येजन्ये मूढ घियो नागा। सिंद्धा मामीयुरक्ञसा ॥ य न योगेन सांख्येन दानव्रततपोउध्वरै: । ब्याख्यास्पाध्याय संन्या सै! ्राप्लुयादू यरनवानपि (श्रीर भाग० है रक० १२ भ्० ८.६ इलो० ) छप्पय सड़ग वाहु-सुत-भृत्य लगायी पर चढ़िय गज | दीयों गज ने फेक मरयों गज सयो देह तजि ॥॥ विंहल में गज. मयो. सूप सॉराप्ट्र पठायो तिनि करि कवि कू दान देश सालवहिं बिकायों ॥ उपर पीड़ित हाथी. मयो, करीं चिकित्सा बह सूपाते | नहीं मगयो गज ज्यर रहित, व्यापी चिंता सपहि भति ॥। अभगवान, श्री कृष्णचन्द्रजी कह रहे हैं--उद्धव | वेवल मुखमे प्रेम भाव रखो वाली जो गोपियाँ, गेंयाँ बूझ्ष श्रौर हरिन हाथी सर्पादि तथा भ्रन्य मूढ बुद्धि वाली जीव योनियाँ हैं उन सब ने सिद्धि चारी है | बडे बडे प््नशील साधक जिस मुझे पीग, सार, दान, ब्रत, सपस्या; यज्ञ, व्याख्या, स्वाध्याय झौर सन्यासादि साधनों द्वारा प्राप्त सही कर सकते उसी मुभवों संसद्ध के द्वारा श्रत्यन्त सुलमता से प्राप्त कर लेते हूँ ।




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