कोई पत्थर से | Koi Patthar Se
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
135
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जायेगी जरूर चिट्ठी... / १७
छुटकन की पसनी (वाल वो अ न खिलाने की रस्म) वी दावत भई रही
थी तब कढईया प पुरी छानने मैं ही वठी थी । लाई चिकनी करने टाली तो
छपाव से ख्रौलतों भयो थी मू पे आये । एवं तरफ को सारा चहरा मारे
फ्फोलन के चिथडा होय गयो । मगर गाकुल वे दददा ने वा मुझे पहचानों
नाय या घर से निकार दयो * मरद अगर मरद है तो पूरो जिसम जल
जान पर भी अपना मेहरियां को पहचान लेवे है !. तेरे राजीव न कौन-
से सेत्त के आलू खाये थे लल्ला, कि अपनी पिरान पियारी वी पहचान भुल
गयो मेरो गोकुल ता हजारन की भीड़ स जपनी पुरानी साइक्ल तक
पहचान लेव है तेरा राजीव रुपा का पहचान भी है तो गाने से ! लव
भला जिसवी बहू गाना वजाना न जानती होवे वाके मरद वी तो हाय गयी
छूट्टी !
राजू लल््ला !.. मेरे गोकुल के दद्दा ने जिस टैम प घरती छोडी थी
तब से हफ्ते भर तक को धीए वहुए विलक्ती रहे थी । तेरी रूपा का
पुजारी दद्दा मरा भर वो थोड़े टेंम अगाड़ू मटक-मटव के गा वजा रही
हैगी। निगोटा बाप न भया, सुर्गी वा अडा भया कि आज फोड़ा, बल
दूसरा दिन !. जौर देख लल्ला, गाव समूचा पानी म तिडी भया जाय
रहा है और अजीनेर जा है सो रूपा के पिछाडी को भागता फिर रया
हैगा। ऐसी अजीनरी से तो चौकस था कि साबुन बटोरी लें के कहीं
हग्जामी कर लेता !
जव तेरी पिच्चर खतम भई तो बहुए ऐसी लजाए सरमाए रही थी
जम मैं विन बताए उनके बरोठे (कोठरी) मे चली गयी होऊ !. गोकूल
और छुटकन अलग को नीले पीले भये जाय रहे थे कि ऐसी पिच्चर मे
अम्मा को चफ्जूल ले आये । तेरी रूपा की उधघडी देह दसा और लप्पा
झप्पी दंघके मरे सोहदे तो सनीमे मं टुर टुर सीटी वजाये रहे हैंगे और मैं
मरी बहुअन बटन से मू छुपाए राम नामी जप रही हुंगां कि गनेस जी जे
फूहेडपना जरतो चुक्ता करी !
राजू लहना । गगा मैया के असीरवाद से धीए वहुए बेटे तेरे बन भी
हैंग । लत्ला, क्या तू उन सबके साथ बैठ के अपनी पिच्चर के चटवारे
ले सब है * गोकुल ने मा वो बताई तो मन यकीन न भया वि वह लजी-
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