अर्थान्तर | Arthantar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
31 MB
कुल पष्ठ :
367
श्रेणी :
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No Information available about सन्हैयालाल ओझा - Sanhaiyalal Ojha
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)“तो आप दोटल खोला चाहते है ? बडा मजा रहेगा निर्मछ, दस सब
लंच वहीं खाया करेगे । और मिस्टर छिम्मी; कॉफी का भी प्रबन्ध वहाँ
रखिएगा--” इतने में बेरे ने आकर सलाम किया--
“औओदह--बेरा, बडा जत्दी आया तुम--ब्स कछ से तुम्हारा काँफी हाउस
बन्द --हमं हमारा खुद का कॉफी हाउस खोलेगा-
निर्मल ने कहा : “किन्तु आज का आडर तो दे दीजिए, मेम साहिब !”
“औओ० के०, माफ किया । तीन कॉफी और--आप स्या सखाइएगा
सिस्टर चिमनलाल *”
“जी; मैं तो किमी के हाथ का छुआ नहीं खाता ।”
“देट्स रीअली दहाइजिनिक ! (वास्तव मे यह स्वास्थ्य के ठिंए उचित है । )
बेर; हाथ से छू कर कोई चीज नहीं आएगी । सब चीज नॉट टचूड बाइ
हैप्ड्स एठमॉल !. कॉठा; चम्मच; छुरी--तत्र तो नॉन बेजिटेसियिन डिश भी
चलेगी न मिस्टर छिग्मी !”'
“नही; नहीं; मेरा मतख्य यह नही है । मैं जरा प्राचीन विचारों में पढछा
हुआ हूँ । घर से बाहर का खाना मैं नहीं खाता !”
“घर से बाहर नहीं खाते ? फिर यहाँ जब तक कि आपका होटल नहीं
खुछ जाता; क्या उपवास कीजिएगा ?”
निर्मल ने देखा कि नमिता चिमन को बनाए; बिना रहेंगी नहीं; तो हँसी
दबा कर उसने बैरे को आईर दे दिया और इशारा किया कि बह
सामान ठे आए |
चिमन कह रहा था : “जी; मैं खुद ही नहीं समझा; द्ोटल खोलने की
कौन-सी बात है ? मैं तो यहाँ पढने के छिए. आया हूँ ।”
“सो तो ठीक है, पर आपने कहा था न; सब सी-डिअरी बिजिनेस; जो
कि आप कर सकते हैं १”
चिमनलाछ ने कातर आँखों से निर्मल की और देखा । वह अप्रतिम भी
हो गया कि दोनों ही उसकी ओर देख कर आपस में हँस रहे हैं ।
नि्मंछ ने कहा : “तुम्हारी अकल भी खूब है नमिता ! छिम्मी बाबू को
रहने के लिए एक मकान चाहिए. ! तुम दे सकती हो ? या यदि तुम्हारी
निगाह में कोई अन्य मकान हो !”'
““पर होटल के काबिल मकान--”
“होटल के छिए, नहीं; रहने के लिए. । ये होस्ट में रहना नहीं चाहते !”
“हमारे दिल की कोठरी में तो जगह है नहीं छिम्मी बाबू !” और ऑठों
श्र अर्थान्तर
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