अर्थान्तर | Arthantar

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Arthantar by सन्हैयालाल ओझा - Sanhaiyalal Ojha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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“तो आप दोटल खोला चाहते है ? बडा मजा रहेगा निर्मछ, दस सब लंच वहीं खाया करेगे । और मिस्टर छिम्मी; कॉफी का भी प्रबन्ध वहाँ रखिएगा--” इतने में बेरे ने आकर सलाम किया-- “औओदह--बेरा, बडा जत्दी आया तुम--ब्स कछ से तुम्हारा काँफी हाउस बन्द --हमं हमारा खुद का कॉफी हाउस खोलेगा- निर्मल ने कहा : “किन्तु आज का आडर तो दे दीजिए, मेम साहिब !” “औओ० के०, माफ किया । तीन कॉफी और--आप स्या सखाइएगा सिस्टर चिमनलाल *” “जी; मैं तो किमी के हाथ का छुआ नहीं खाता ।” “देट्स रीअली दहाइजिनिक ! (वास्तव मे यह स्वास्थ्य के ठिंए उचित है । ) बेर; हाथ से छू कर कोई चीज नहीं आएगी । सब चीज नॉट टचूड बाइ हैप्ड्स एठमॉल !. कॉठा; चम्मच; छुरी--तत्र तो नॉन बेजिटेसियिन डिश भी चलेगी न मिस्टर छिग्मी !”' “नही; नहीं; मेरा मतख्य यह नही है । मैं जरा प्राचीन विचारों में पढछा हुआ हूँ । घर से बाहर का खाना मैं नहीं खाता !” “घर से बाहर नहीं खाते ? फिर यहाँ जब तक कि आपका होटल नहीं खुछ जाता; क्‍या उपवास कीजिएगा ?” निर्मल ने देखा कि नमिता चिमन को बनाए; बिना रहेंगी नहीं; तो हँसी दबा कर उसने बैरे को आईर दे दिया और इशारा किया कि बह सामान ठे आए | चिमन कह रहा था : “जी; मैं खुद ही नहीं समझा; द्ोटल खोलने की कौन-सी बात है ? मैं तो यहाँ पढने के छिए. आया हूँ ।” “सो तो ठीक है, पर आपने कहा था न; सब सी-डिअरी बिजिनेस; जो कि आप कर सकते हैं १” चिमनलाछ ने कातर आँखों से निर्मल की और देखा । वह अप्रतिम भी हो गया कि दोनों ही उसकी ओर देख कर आपस में हँस रहे हैं । नि्मंछ ने कहा : “तुम्हारी अकल भी खूब है नमिता ! छिम्मी बाबू को रहने के लिए एक मकान चाहिए. ! तुम दे सकती हो ? या यदि तुम्हारी निगाह में कोई अन्य मकान हो !”' ““पर होटल के काबिल मकान--” “होटल के छिए, नहीं; रहने के लिए. । ये होस्ट में रहना नहीं चाहते !” “हमारे दिल की कोठरी में तो जगह है नहीं छिम्मी बाबू !” और ऑठों श्र अर्थान्तर




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