संसार की महान् आत्माएँ | Sansar Ki Mahan Aatmaye

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Sansar Ki Mahan Aatmaye by श्रीकृष्ण 'सरल' - Shreekrishna 'Saral'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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म गातम उुद्ठ [११ “सिक्तओ, संभव है मेरे पइचात्‌ तुम समझने लगो कि झब हमारा उपदेशक कोई नहीं, हमारा मार्ग-दशीक कोई सहीं । ऐसा कमी मत्त समकना । जिन-जिन घर्मों का मैंने उपदेश किया है, उन्हीं को तुम ापना शास्ता (उपदेकक) आर मार्ग दशक समससा 1”! यह हैं तघागत के अन्तिम शब्द जिनकी संक्रार आज भी धर्म- प्राण जनता को शान्ति का अमर-सन्देश दे रही है। उसकी पावन- स्मृति में विद्तर के करोड़ों कण्ठों से ाज भी एक ही व्वसि निकलती है-- “वुदठ शरण गच्छामि, घम्में शरण गच्छामि, संघ शरपं गच्ल्लामि 1”?




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