मौनव्रत कथा | Maunvrat Katha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
994 KB
कुल पष्ठ :
58
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मौनघ्रत कथा पु
कानेके लिये आत्म परिणामोंमें ऐसी विछचश
दृढ़ता होनी चाहियें कि कितनी ही भयंकर
विपत्ति, केसा ही भय, विश्वकों मोहित करने-
वाला केसा ही लोभ ओर तीन जगतको ललल-
चानेवाली केंसी ही मधुर झाशा भले ही कोई
प्रदर्शित करे तो भी अपने परिगामोंमें देव,शास्त्
आर शुरुकी श्रद्धासें यत् किंचित् मात्र भी शंकर
न होनी चाहिये। सोचकी प्रात्ि इन सिवाय
अन्यसे कहपास्त कालमें थी नहीं होगी ऐसी
दिव्य हृद्तासे श्रद्धान करना सम्पग्दर्शन है।
सम्पग्दशुन* होनेपर वह जीव भर्मंका पात्र
समता है। ऐसे जीवोंका ज्ञान सम्पर्ज्ान
कहलाता है, जिन जोत्रों के व्यवहार सम्यग्दर्शन
दाह मूल गुण पालन करे बिना श्रावकोंके रक्त-जानरततु
गौर इद्यकी शुद्धि नहीं दोती है, क्योंकि म्रद्यादिकों के सेवनसे
रमें करूप्ता, कान टंतुमोंमें चिकारठा, भीर मनें जाड्यता सदच
चनो रहती है। मद्य त्याग १ मांसत्याग २ मधुत्याग ३ चढ़फठ
सांग ४ पीपल फछ त्याग ५ उदंघर फछ त्याग ६ पाका'फल-
त्याग ७ कटूमरफल छाग ८ ये भी मूखगुण हैं ।
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