मालारोहण | Malarohan

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ज्ञानानन्द जी न्यायतीर्थ - Gyananand Ji Nyayatirth

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ब्र. बसन्त - Br. Basant

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अध्यात्म - दर्शन अ ध्यात्म वाद के कारण भारत-विश्व का गुरू माना जाता है, अध्यात्मवाद की चर्चा सब संत महात्मा धर्म सम्प्रदाय करते हैं, पर अध्यात्म दर्शन, विरलों को ही होता है । जैन धर्म में ' 'सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्राणि मोक्षमार्ग: '' कहा है। का कि सम्यग्दर्शन कहो, अध्यात्मदर्शन कहो, परमात्मेदर्शन कहो, स्वरूप अनुभूति कहो, सब एक ही है, इसके होने पर ही अनादि मिथ्या दर्शन तथा जन्म मरण का चक्र मिटता है। करणार्नुयोग में पांच लब्धि का विधान है, द्रव्यानुयीग में भेदज्ञान पूर्वक शुद्धात्मानुभूति बताई है । आज देश में धन वैभव के मूल्य बढ गए है, भौतिकता की चकाचौध मे जीवन अस्त-व्यस्त हो रहा है- आध्यात्मिकता से शून्य हो रहा है। सादगी का सौन्दर्य, सघर्ष का हर्ष, समता का स्वाद और आस्था का आनंद यह सब हमारे आचरण से पतझर की तरह झर गए है । आज समाज की सारी अशाति सारे सक्लेश इसी वैचारिक पतझर का परिणाम हैं। जो लोग जीवन को बिना कोई दिशा दिए जीना चाहते है, वे अपने आपको तो अर्थहीन बनाते ही हैं, समाज को भी हानिकारक परम्पराओं की बेडी बांध जाते है। यह जीवन, सृष्टि का सर्वोत्कृष्ट वरदान है, - इसे निरर्थक नहीं बिताया जाना चाहिए। स्वहित और परहित के सोद्देश्य सार्थक बनाकर इसे जीना चाहिए। इसी उद्देश्य को सामने रखकर श्री गुरू तारण तरण मडलाचार्य जी महाराज ने चौदह ग्रथो की रचना की जिसमें जीव को अध्यात्म दृष्टि पूर्वक कैसे जीना चाहिए- इसका सांगोपाग वर्णन है। उन्ही ग्रथों मे से पहला ग्रथ यह श्री मालारोहण जी है, जिसकी अध्यात्म दर्शन टीका - आत्मनिष्ठ साधक पूज्य श्री स्वामी ज्ञानानद जी महाराज ने की है। इसमें अध्यात्म दर्शन का सारा विधि- विधान अपने चिंतन-साधना और प्रश्नोत्तर के माध्यम से किया गया है। अध्यात्म दर्शन करने वाले मुमुक्षु जीवो के लिए यह रामबाण औषधि के रूप में है । इसका स्वाध्याय चिन्तन-मनन कर अपने जीवन को अध्यात्म मय बनायें- इसी में मनुष्य भव की सार्थकता है। . श्री मालारोहण ग्रथ का विषय निम्न प्रकार है- पहली दो गाथा में- मत




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