केदारनाथ अग्रवाल का रचना संसार | Kedarnath Agarwal Ka Rachana Sansar
श्रेणी : हिंदी / Hindi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
465 MB
कुल पष्ठ :
514
श्रेणी :
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No Information available about जितेन्द्र कुमार वाजपेयी - Jitendra Kumar Vajapeyi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सुचारू रूप से स्थापित नहीं हो सका, इससे भारतीय जनता की मनोदशा बिगड़ गयी और
उसे गम्भीर आघात पहुँचा तथा उसकी आशाओं में वज्नपात हो गया। इससे आहत होकर
_ भारतीय कांग्रेस के नेताओं ने अपने आन्दोलन को गति देते हुये व्यापक स्वरूप प्रदान
किया। जिससे देश के हर तबके का व्यक्ति इससे जुड़ा और आन्दोलन को राष्ट्रीय स्तर पर
व्यापक गति व अपार जन समर्थन मिला जिससे राष्ट्र में आजादी की मांग परवान चढ़ी।
इस घटठना ने देश में मकड़जाल फैलाये ब्रिठिश शासन के प्रति लोगों में 'दायित्व
वोध' की भावना जगाई। वर्ष १९१५ भारत के स्वतन्त्रता संग्राम की इतिहास की दृष्टि से
खासा महत्वपूर्ण है। महात्मा्गाँधी ने इसी वर्ष भारतीय राजनीति में प्रवेश कर इस “जंग ए
आजादी' को नयी दिशा प्रदान की। इन्होंने अंग्रेजी सत्ता के साथ सशस्त्र संघर्ष का मार्ग न
अपनाकर 'अहिंसा' व 'सत्याग्रह' का सहारा लिया तथा अंग्रेजी राज्य की चूलें बिना शस्त्र
के ही हिला दीं।
ब्रिठिश हुकूमत हमारे राष्ट्रीय आन्दोलन के विकराल रूप को देखकर भयभीत हुयी
और ऐसे स्वतंत्रता से जुड़े राष्ट्रीय आन्दोलनों को कुचलनें के लिए इस सरकार ने १९१५९
में ही 'रौलट एक्ट' पारित कर दिया। इस एक्ट के अनुसार-किसी भी व्यक्ति को राजद्रोह के
महाभियोग से दंडित किया जा सकता है यह वास्तव में एक 'काला कानून' था जिसका
पुरजोर विरोध किया गया जिसके फलस्वरूप ८ अप्रैल सन् १९१५ को सारे देश में व्यापक
हड़ताल हुयी और जगह-जगह पर सभायें आयोजित की गयीं, कई बड़े-बड़े भारतीय
नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया, इन नेताओं की गिरफ्तारी का विरोध करने वाले लोगों
को जलियाँवाला बाग में हुयी एक सार्वजनिक सभा में धोखे से छल-पूर्वक नर पिशाच
अंग्रेज अधिकारी जनरल डायर ने अन्धाधुन्ध फायरिंग कराकर असंख्य नारियों और पुरुषों
को गोलियों से छलनी करा दिया। इस क्रूर अंग्रेजी अफसर को महान क्रान्तिकारी सरदार
ऊधम सिंह ने १९४० में इंग्लैण्ड जाकर गोली से उड़ाया।
जलियाँवाला बाग (अमृतसर) में हुयी इस अमानवीय घटना से जन-सामान्य के.
अलावा महात्मा गाँधी का हृदय भी विदीर्ण हो उठा, उन्होंने प्रतिज्ञा की कि- “वह ब्रिटिश.
हुकूमत को पुनः सहयोग न देगें, इस पैशाचिक सरकार को किसी रूप में सहयोग देना पाप
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