उववाइय सूत्रम् | Uvavaiya Sutram

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Uvavaiya Sutram by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पु नमो जिणाणं जियभयाणं उववाइय सुत्त॑ं नगरी बन ३-- तेण॑ कालेणं तेण॑ समण्ण चम्पा नाम नयरी होत्था । रिद्व-त्थिमिय-समिद्धा, ” पमुइय-जश-जाणवया दआइण्ण-जश-मणुस्सा दल-सयसहस्स-संकिटट-विकिट्ट-लटट- पृण्णुत्त-सेउसीमा कुक्कुड-संडेय-गाम-पउरा ” उच्छु-जव- सालि-कलिया गो-महिस-गवेलग-प्पथूया; उस काल भौर उस समय में “चम्पा' नामकी नगरी थी । वह ऋद्धिदाली (- भवनादि से बढ़तीं हुई कलावाली ) , + पाठान्तरे-'पमुइय-जणुज्जाण-जणवया' । + पाठान्तरे-...'सालिमालिणीया' ।




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