विद्यार्थियों से | Vidyarthi Se
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
310
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ ७ )
रामचन्द्रव ने फिए दूसरा प्रश्न पूछा--“वापू जी, क्या आप ; «
सारे कल कारखानों के विरुद्ध हैं ?” कर
रामचन्द्रन के दूसरे प्रश्न पर मुस्कराते हुये उन्होंने उत्तर
दिया--जब कि में यह जानता हूं कि यदद शरीर भी कल पुरजों
का एक झ्पन्त कोमल टुकड़ा हे तो यद्द कैसे हो सकता है?”
प्र्खा भी एक सशीन है सें सशीन की उत्कट थामिलापा से
ऐतरज कातता हूं न कि मशीन से, यह अझभिलापा सेहनत बचाने
बाली मशीन के लिए है । मनुष्य परिश्रम बचाने की ओर तब तक
बढ़ता हे जब तक हजारों झादसी बिला काम के नही' हो जाते»
भूखों मरने के लिए खुन्नी सड़कों पर ढकेल दिये जाते हैं। में
समय श्र परिश्रम बचाता चाहता हूँ । परन्तु एक ही ये के
लिए नहीं बल्कि सचुष्य मात्र के लिए । में थोड़े मनुष्यों के हाथों
में धन का केन्द्रीकर्ण नहीं पसन्द करता । बल्कि वह सारे लोगों
के पास हो । श्राज के कल-पुरजे थोड़े से लोगों को लखपति होने
में सहायता करते हैं । इसकी ऐ्रपट-प्रेरणा परिश्रम चिचाने का परो”
पकार नहीं; बल्कि एक लोभ है । चद्द वस्तुओं के इस विधान से
विपरीत है. जिसके लिए में अपनी पूर्ण शक्ति से लड़ रहा हूं ।
रामचन्द्रन ने उत्सुकता से पूछा--“चवापू जी; तब तो 'छाप
कलत-पुरजों के विरुद्ध उतना 'धिक नहीं लड़ रददे हैं बल्कि इसकी
चुराइयों के जो आज के युग की प्रमाण हूँ ।”
“पे लिस्संकोच कहूँगा 'हां' परन्तु में कहुंगा कि बेज्ञानिक सत्य
'और आविष्कार सर्वे प्रथम लोभ के श्रप्न होने से रोके जाने
चाहिएँ । उस समय मजदूर पर अधिक काम न होगा श्र कल
पुरजे एक अड़ंगे के वदले एक सहायक होंगे। मेरा उद्देश्य है कि
सारे कल पुरजे चरवाद न किये जाँय वल्कि पावन्दी के साथ
प्ले ।
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