भावी शिक्षकों के लिए आधारभूत कार्यक्रम | Bhavi Shikshkon Ke Liye Aadharbhoot Karyakram
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
655
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)1०पड़]
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व्यक्ति का विकास अधिगम पर आधारित है। वह जीवन वे' प्रारम्भ से ही
सीयना प्रारम्भ कर देता है तथा सीयने की यह प्रत्िया जीवनपय त चलती रहती
है ।.बालक जम क समय चिल्कुल असहाय हाता है । परराश्ित होने के कारण उसका
पावन पोषण दूसरे व्यक्ति करते है परन्तु ज्या-ज्या वह बडा होता है, स्वावलम्बी
बनता जाता है । बानक मे इस प्रकार का परिवतन उसमे सीने एव अनुसरण
करन के गुण के कारण होता है ।
सीखने की श्रश्तिया में दो तत्वों की प्रमुय भ्रूमिका हाती है । पहला हैं, वाललक
की परिपकवता तथा. दूसरा है, अनुभव स लाभ उठाने वी क्षमता । बालक की
परिपववता व! विकास उसकी आयु वे साय हाता है । अनुभव से लाभ उठाने वी
क्षमता सीखने की प्रक्रिया म सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण समझी जाती है। उदाहरण के
लिए एक बोलक दीपेक की लौ को चमर को देखकर उसकी ओर आक्पित होता
” है । जब बह उसे स्पश करता है तो जलने की पीड़ा अनुभव करता है । इस प्रकार
! बह सोखता हैं तथा भेत्रिप्य में इस व्यवहार की पुनरावृत्ति नहीं करता ।
सीखना वातावरण से भी सम्बंधित है 1 व्यक्ति के चारो तरफ सामाजिक,
पारिवारिक, सनोवचानिक एवं भौतिक वातावरण है जो -कि उसे जन्म से ही मिलता
' है।'उसकें बडे होन पर इस वातावरण मे जटिलता बढ़ती है। वह अनुभवों बा लाभ
उठाते हुए इस वातावरण के उपयुक्त अपन व्यवहार एवं प्रतिक्रियीओ को बनाता है ।
इस प्रकार वातावरण के प्रति उपयुक्त प्रतिनिया को अपनाना ही अधिगम, कहलाता
है।
कि छू गाने! (७०806) (1965) के अनुसार अधिगम के तीन प्रमुख तत्त्व हैं--
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