भावी शिक्षकों के लिए आधारभूत कार्यक्रम | Bhavi Shikshkon Ke Liye Aadharbhoot Karyakram

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Bhavi Shikshkon Ke Liye Aadharbhoot Karyakram by जगदीश नारायण पुरोहित - Jagdiish Narayan Purohit

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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1०पड़] न्दपंह्व दे जा 3 मच दा कस के न. +. अध्याय डया न्क न ना थे कि कु । गन झधिगस नर गा कट हँ (.65#7109) महत्व द व्यक्ति का विकास अधिगम पर आधारित है। वह जीवन वे' प्रारम्भ से ही सीयना प्रारम्भ कर देता है तथा सीयने की यह प्रत्िया जीवनपय त चलती रहती है ।.बालक जम क समय चिल्कुल असहाय हाता है । परराश्ित होने के कारण उसका पावन पोषण दूसरे व्यक्ति करते है परन्तु ज्या-ज्या वह बडा होता है, स्वावलम्बी बनता जाता है । बानक मे इस प्रकार का परिवतन उसमे सीने एव अनुसरण करन के गुण के कारण होता है । सीखने की श्रश्तिया में दो तत्वों की प्रमुय भ्रूमिका हाती है । पहला हैं, वाललक की परिपकवता तथा. दूसरा है, अनुभव स लाभ उठाने वी क्षमता । बालक की परिपववता व! विकास उसकी आयु वे साय हाता है । अनुभव से लाभ उठाने वी क्षमता सीखने की प्रक्रिया म सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण समझी जाती है। उदाहरण के लिए एक बोलक दीपेक की लौ को चमर को देखकर उसकी ओर आक्पित होता ” है । जब बह उसे स्पश करता है तो जलने की पीड़ा अनुभव करता है । इस प्रकार ! बह सोखता हैं तथा भेत्रिप्य में इस व्यवहार की पुनरावृत्ति नहीं करता । सीखना वातावरण से भी सम्बंधित है 1 व्यक्ति के चारो तरफ सामाजिक, पारिवारिक, सनोवचानिक एवं भौतिक वातावरण है जो -कि उसे जन्म से ही मिलता ' है।'उसकें बडे होन पर इस वातावरण मे जटिलता बढ़ती है। वह अनुभवों बा लाभ उठाते हुए इस वातावरण के उपयुक्त अपन व्यवहार एवं प्रतिक्रियीओ को बनाता है । इस प्रकार वातावरण के प्रति उपयुक्त प्रतिनिया को अपनाना ही अधिगम, कहलाता है। कि छू गाने! (७०806) (1965) के अनुसार अधिगम के तीन प्रमुख तत्त्व हैं-- (19 सीखने बाला श्राणी या अधिग्मक्तता नी «5िद्राह मे व, _ पट टला ० 1-बवाणफफ ये मठ! प्ाएडएाा 300 पाई 1965 * ् ही... हर हे. पक्के कया




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