वन पशुओं के बीच में | Van-pashuon Ke Beech Men

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Van-pashuon Ke Beech Men  by यादवेन्द्र दत्त दुबे - Yadavendra Datt Dube

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ५ ] रही, एकाएक दोनों अपने पिछले पैरों पर खड़े हो गए और जोर से गुर्ति हुए एक-दूसरे पर दूट पड़े । उनमें से एक, थकान की वजह से या अधिक घायल होने के कारण जमीन पर गिर पड़ा और पछक झपते हो दूसरा वाला कुछ गर्जना करते हुए उसे दवोच वेठा । मैने सोचा कि गव यह मन्तिम प्रहार उसको गर्दन पर करेगा और अपनी विजय स्थिर कर छेगा लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ । वह घराशायी शत्रु के ऊपर केवल गुर्राता हुआ खडा रहा और अपने दाँतो से उसकी गर्दन का स्पर्श करता रहा । विजित वाथ अन्र भो वैसे हो खड़ा रहा । कुछ देर के वाद विजेता वाघ उचे छोड़कर हद गया और गिरा हुआ वाघ उठकर युद्धभूमि से वेतहासा जंपल की भोर भागा । उसके भाग जाने के बाद विजेता बाघ ने पूरी मावाज के साथ विजय को गर्जना को जो कि रात को नीरवता में काफी भयंकर और कान फाड़ने वाछी लगी । मादा जो कि शुरू से अन्त तक के युद्ध की साक्षो थो, उठो और धीरे-धीरे विजेता के पास तक गई। उसके शरीर और गर्दन का स्पर्श किया और उसके घादो को चाटा । उसकी उस समय की भगिभायें मानव सुन्दरियों के समयोचित भआचरणों के सर्वथा अनुकूल थो । नर वाघ ने भो उसके प्यार-दुलार का उसो प्रकार प्रत्यु्तर दिया, अब उसका क्रोघ लानत था भौर दिमाग संयत । कुछ देर तक ये परस्पर प्रेम प्रदर्शन करते रहे फिर मस्ती के साथ जंगल में एक भोर चल दिये । विजित बाघ ने अपनों गर्दन सर्मापित करके मपनी पराजय स्वीकार कर लो थी और वह मारा नहीं गया । इसो प्रकार की एक आर मेरो भाँखों देखी दिलचस्प घटना है जो कि जंगली भेड़ियो के एक समुदाय के स्वामित्व को लेकर घटो थी । मैं एक मचान पर वेठा हुआ भूखे वाघ के शिकार की प्रतीक्षा कर रहा था। उसको फुस्लाकर लाने के लिए एक छोटा सा पड़ढा पानी के गड्ढे के पास वाँघा गया था । रात का मौसम आानन्ददायक था । वसन्त न्रतु को शुरुआत थो और चन्द्रमा थोड़ो देर से उगा था जिसकी घवल गाभा




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