पक्षियों का संसार | Pakshiyon Ka Sansar
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
118
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about सीताराम सिंह पंकज - Sitaram Singh Pankaj
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पक्षियों मे वायवीय अनुकूलन 15
जतुओ के अत -ककाल से बहुत मि न होते हैं । सच तो यह है कि पक्षियों
का अत -ककाल (00०० चटाटाणा) वातिल (एफ८णा5/1८) किंतु काफी
मजबूत होता है। अनेक हडिडयाँ गए के आकार की होती हैं। पक्षियी
में हुड्डियो की सब्या मे ह्लास (९८८०८॥०) की प्रवृत्ति नजर आती
है। उदाहरणत कपास की हुडिडयाँ कागज जैसी पतली होती हैं ।
पक्षियों के दाँत नही होते, उसकी जगह हल्की चोच होती है। अनेक
अस्थियाँ एक साथ सयुकत भी हो जाती हैं। पुच्छ कशेरुकी (02एत81
टा।धशज्ढों का छोटा होना भर पाइगोस्टाइल (?५8०४४1८) का बनना
घायु में स्थिरता प्रदान करने मे सहायता करता है। पक्षियों की छोटी
दुम (8०71 (210 में लम्बे पुच्छ-परो (12॥-200ध४) का एक गुच्छा
होता है। जो उड़ने के दौरान पखे की तरह फैलकर पतवार का कार्य
वरता है। ये उड़ने के क्रम मे शारीरिक संतुलन भी बनाये रखते हैं ।
पक्षियों के भग्रपाद तो उड़ने के लिए अनुकूलित होते हैं, किंतु पश्चपाद
(नफाए-॥ए9५ द्विपाद सचलन (8096681 ,0८०ाा०110) के लिए रुपात-
रित होते हैं । इस प्रकार कोई भी पक्षी हवा मे उडने के अतिरिक्त भूमि
पर भी भली-भाति चल फिर सकता है। अधिकाश पक्षियों मे पक्षिसाद-
+ क्रियाविधि (रण पाठ प6८0801570 भी, देखने वो मिलती है ।
“पक्षिसाद का भर्थ यह है कि जब कोई पक्षी पेड की डली पर बैठता है|
तो उसके पैरो की उगलियाँ स्वत ही डाल,को जकड्कर कस लेती है ।
इस प्रकार बैठा पक्षी सो भी जाए, तो पेड से गिरता नही है। वाथवीय
जीवन मे इसका बहुत महत्व है।
उपापचय की दर
पक्षियों की लम्बी और गतिशील गर्दन तथा लम्बी, नुकीली चोच
(श०0167 छिट8८5) भी उनके चायवीय जीवन के लिए उपयोगी होती
है। जाहिर है कि हवा मे उडने की आदत के कारण पक्षियों के उपापचय
की दर (84510 नहा30010 रि26न्>छ0त0९) अय जीव जतुमों से बहुत
ज्यादा होती है। उहे अधिक शक्ति और तदुनुरूप अधिक भोजन की
आवश्यकता होती है। इनकी पाचन शक्ति भी तीव्र होती है। इनके
शरीर में अनपचा अवशिष्ट शीघ्र हो शरीर से बाहर निकाल दिया
जाता है। अत पक्षियों का मलाशय छोटा होता है। इनके फेफड़े
भी ज्यादा विकसित होते हैं। फेफडो मे विशिष्ट रचनाएँ पायी जाती
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