पंचास्तिकायः | Panchastikay

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Panchastikay by आचार्य रामानन्दजी शास्त्री - Aachary Ramanndji Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पयालिगाप 1 प्‌ मंत्र शम्दशादार्थरूपेग निरिषाउनियेयता समयशब्दस्य ठोकालेकव्िमागयानिदिन [ समचाओ पचपण्ट समउसि जिशुसमेहिं पप्णत्त । सो चेद ₹ृवदि लोओ तसो अमिभो जलोओ सर ॥ ३ ॥ समवाय पचानों समय इति पिनोत्ने प्रज्ञम । स च एवं मदति टोकस्ततोडमितोध्लोक' ख ॥ ३ 8 तन थे. परथावामलिकायाना सभी मध्यस्थों रागदेपाग्यामतुरइतों वर्षपदवा- ( उपोदात ) तथपा-प्रपमतस्तावत्‌ ''इद्सयवदियाण'” मिव्यादिपाटक्रमेणगादशी तर”ात गायामि परशालिकायपडुद मप्रतिपाइनरूपेण प्रथमो महाधिकार , अथवा से एवाइृतच दी मिग्रपिण 5पिफशतपर्न्तथ | सदनन्तरे “अभिरर्िऊिण सिरसा” इययादि पयाशद्राथामि समफंल्नवपदार्थन्यार यानस्पपेण द्विनीदों महाधिकार , अय॑ से. एवाइतच उरीशाभिपरायशाएा व्यरारिश्षाधापपन्तथ । अधानन्तर रीयस्पभासे इयादि रिंगतिगाधाभिरमेक्िमागभोत्पत्प यथनमुख्यचेन हुनीयों मदापिपार इति समुदापेनकाली सुक्तरशतगारधािमंदाविरारभय हातन्य । सब्र महापिकारि पाठकमेणा तराविकारा कथ्यनते । तथया-एयाइशोत्तरसतसाधामप्ं *'इूद सब” इनयादि गायासप्तत समपशब्दार्यपीदिकाप्याए पानसुरपलेन, सदन तरें धतुदेगगाथा इप्यपीठिकाव्या पानय, अप गाधापथक फाउद्रस्यमुए स्वेन, तदनस्तरं निपदाशद्ाया जीरा- सिरायपयनस्पेण, सय गायादशक पुदटासिवायमुर्य देन, तदनन्तर साधासतर धर्माध मास्तिकापप्याएपानिव, अप गापासितरमाराशास्तिवायकथनमुश्य रेस, तंदनन्तर गायाएप' चूटिकोपसदारप्याह्पानमुख्य देन पथयनीत्यप्मिर तराथिवार परयास्तिपायपडयप्यप्रततपणमप्रथ ममदाधिकारि समुदापपातनिका 1 तमाप्टान्तराधिकारइ मे प्रथमत सप्ततायामि समयगम्थ सपीटिका कप्यते-सामु समयाधासु मष्ये गाथाइयेनशविदतामिमतदेवतानमरारों मड्र्य साथ गाधाय्रपेण एयाल्तिशायर्मशषेपप्यार यान, सरनन्तर एफ्गापपा भाठसदितपदालिशा थानों दंव्यपंक्ञा, पुनरंकगाथया सेशरम्पर्तिरररीपररिदारमिति समदराम्दाधपीरिगर्य स्वसशपेण समुशपपातानेका | अथ गाधापूर्ान न्टज्ानाथरूपेण थियामि' यता समयपम्स्प उ्गर्तन हु डावानेव बरकदां ज्ञाता हू अर्थसमय बर हैं तो बगव नप्ीन है ॥.. ॥ भाग राइद कान अर्थ १ जज सम राय शमय स्य ६ टू. रनर सवेरे केश कब्भ ३ > बॉय पथ लत शबर 614 ये बादगेर दकयन 4 व रथ नो हुए पल जे 1 फेज जे श थे हु थे दि! छपिवउज हे सइपिकक ते ड ब चुन लमब्यल प कद नन ४ किदुम ते के. # मै ब्याह श ही




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