प्राकृत और अपभ्रंश साहित्य | Prakrat Or Apbhransh Sahitya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्राकृत साहित्य परपरा के अनुसार उसका अध्ययन यहाँ आावदयक नहीं समझा गया । और प्रतीत ऐसा होता है कि हिन्दी साहित्य से वह बहुत दूर पड़ता है, उसका कदाचितु ही कोई प्रभाव पडा हो इससे भी उसे छोड दिया गया है । इसी प्रकार घामिक जैनागमों ( अर्धमागघी गौर जैन शौरसेनी ) का भी अध्ययन आवश्यक नहीं प्रतीत हुआ । उसे भी छोड दिया गया है। जैन प्राकृत-साहित्य का अध्ययन आव- इयक समझा गया हैं, क्योकि जैन अपभ् श-साहित्य भर जैन प्राकृत-साहित्य में विपय-विवेचन, दौली और भावधारा की दृष्टि से कोई अतर नही है। पाली साहित्य और जैन घामिक कृतियो की अनेक प्रकार की टीकाओ मे जो सनोरम कथा-साहित्य मिलता है तथा अन्य अनेक साहित्यिक विधेषताएँ मिलती हैं उनका अवद्य ही समस्त भारतीय साहित्य पर प्रभाव पडा होगा । भाषा, सस्कृति, 'घर्में, इतिहास की दृष्टि से इस साहित्य का मूल्य बहुत ही अधिक हे । श्रस्तुत अथ मे केवल साहित्यिक प्राऊत-साहित्य का ही अध्ययन प्रस्तुत किया गया है । जैन प्राकृत साहित्य जैन सप्रदाय की सबसे बडी विद्येपता रही है कि साहित्य रचना की धारा को उसने कभी भी मद नही होने दिया । प्राकृत, सस्कृत, अपस्र शा, लोकभाषाएँ सभी में जैन रचनाएँ मिलती हैं । दिगम्वर और इवेताम्वर दोनो ही जैन सप्रदायों द्वारा प्राकृत मे साहित्य छिखा गया है। दिगम्वर सम्प्रदाय के आचायों ने शौरसेनी प्राकृत मे लिखा है और दवेताम्बरो ने महाराप्ट्री मे ।* विमल सूरि कृत पउमचरिय* प्रथम सपलब्ध कृति है जिसमे राम कथा है। राम कथा का जैन रूप इस कृति में मिछता है। पुराण दौछी में ग्रथित इस कृति मे ११८ उद्देश ( अध्याय ) हैं। समस्त कृति का विस्तार ९००० पद्यो से भी अधिक है । प्रचलित राम कथा के सम्बन्ध में श्रेणिक राज की अनेक दकाओ का समाघान करने के लिए गोतम गणधर ने यह कथा कह्दी है। प्रसिद्ध राम कथा के सभी प्रमुख पात्र इसमे मिलते हैं, प्रधान पात्र सभी जैन घ्में मे दीक्षित दिखाए गए है और अनेक स्पछो पर मानवीकरण १. बिहानों ने इन प्राकतो को जैन झौरसेनी' तथा “जन महाराष्ट्री' क् कहा सामान्य प्राकृत से कुछ भेद इन प्राकृतो में मिलता है । दे० पीदेल, दे टिक० अनु० १६, र०२१। २. डा० हेरसान्न याकोबी द्वारा संपादित, जैन धर्म प्रसारक सभा भावनगर से श्रकाशित, १९१४ ई० ।




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