पुष्प - पराग | Pushpa Paraag
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
353
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प पुष्प-परांग
उलदा पड़ा हुमा है, चारें ोर थाली फिरती है फिर भी उसमें से कोई
मोती नहीं गिरता । इसका उत्तर “श्राकाश” दिया गया दे क्योंकि आकाश
रूपी थाल तारे रूपी मोतियों से भरा डु्रा है श्रौर बद्द सबके ऊपर
उल्टा पढ़ा इुझ्ा है, फिर भी उसमें से तारारूपी मोती एक भी नददीं
गिरता ।
बात की बात ठठोली की ठठोली ।
मरद की गाँठ औरत ने खोली ॥ (ताला)
शब्दाथे--ठठोली न्>हूँसी-मज़ाक ।
भावाथे--श्रमीर खुसरो कहते हैं कि यह बात की तो बात है और
हँसी की हँसी है कि पुरुष की गाँठ औरत ने खोली । इसका उत्तर “ताला”
दिया गया दे । ताले रूपी पुरुष की गाँठ “चाबी” रूपी स्त्री खोलती है ।
उब्वल बरन अधीन तन, एक चित्त दो ध्यान ।
देखत में तो साधु है, निपट पाप की खान ॥ (बगुला)
शब्दाथ--उज्वलन्-सफ़ेद । भ्रघीनन्-विनयी, नम्र । तन
शरीर । साधुन्>सज्जन । निपट--बिल्कुल, सबंधा ।
भावाथे--एक जीव ऐसा है, जिसका रंग बिल्कुल सफ़ेद है श्र
जो बड़ा विनयी है । उसका चित्त तो एक है पर ध्यान दो में लगा रहता
है । देखने में तो वह बड़ा सज्जन प्रतीत होता है पर वास्तव में बिलकुल
पाप की खान है, इसका उत्तर “बगुला' है। बगुले में ये बातें पूरी-पुरी
घटती हैं |
एक नार तरवर से उतरी मा सो जनम न पायो।
बाप को नाम जो वासे पूछयो धो नाँव बतायो ।
धो नांव बतायो 'ख़ुसरो' कौन देस की बोली ।
वाको नाँव जो पूछयों मेंने झपना नाँव न बोली ॥। (निंबोरी)
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