गीतायन | Geetyan

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Geetyan by डॉ. देवदत्त - Dr. Devdatt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अयम अध्याय ३ हैं, श्वसुर हैं, जमाई हैं, वावा हैं, नाती हैं, मामा हैं, साले हैं प्यारे हैं, सित्र हैं. छुल के वड़े वूढ़े हैं तथा छोटे भी हैं संघ सम्बन्धी सखा. सनेही # नातेदार सगे अपने ही ॥ लखि चोलिउ अज्जुन वलधारी + खुनिये विनती कृष्ण मुरारी ॥ और सब अपने ही सम्बन्धी हैं, साथी हैं, और सगे रिश्तेदार हैं । उन सबको देखकर वलवान्‌ अजुन कहने लगे कि हे कृष्ण ! आप सेरी विनय को सुनिये । में परिवार लखईं निज ठाढ़ा * निश्चय समर लागि सो चाढ़ा ॥ इनईहिं देखि जस मम गति होई # नाथ खुनिय अब चित दै सोड ॥ हे कृष्ण ! में अपने परिवार को सन्मुख खड़े देखता हूँ, जो लड़ाई के लिये उद्यत है। इन लोगों को देख कर जो मेरी दशा होती है, हे स्वामी आप उसे ध्यान से सुनिये । गात सिरात खुखात मुखो तनु कम्प छुटो लरजावत है ॥ रोम खरे तुब हू पज्नरे मन चंचल श्र भ्रमावत है ॥ हाथन ते घनु जात शिसे अँधियार भयो सु लखाबत है. ॥ वैठन की सकता न रही इमि शोक समूह जरावत है ॥ अज़ुन कहने लगा कि दे कृष्णजी शोक के कारण मेरी देदद शिथिल दोती है, मुख सूखा जाता है, शरीर में रोमाश्व होता है और कॉँपता है, मेरे शरीर की त्वचा जलती हुई मालूम होती है; और चंचल सन भ्रसित होता है। हाथों से गाण्डीव धनुष गिरा पड़ता है और आँखों के सामने अँधेरासा दीखता है । च्और मु बैठने की सामर्थ नहीं जान पढ़ती । फल विपरीत लखात सुहि; केशव कुल के नाश । स्वजनहिं रण संहारि के, कबन भलाई आश ॥




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