शशि प्रभा | Shashi Prabha
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
93 MB
कुल पष्ठ :
555
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कक न चुड जड़ा नाना
' ध्यानसिह ने. बहुतेरा चाहा कि इस ज़मीन को कारी-
गरी को जाने पर वह न जान पाएं। श्रती पर कोई चिन्ह न
मिला । घरती साधारण शर ठोस सी दिखाई पड़ी ! छाब उस
द् द्रवाजे.को खोलना चाहा । ढूँढ़ने पर चौोखट का बटन
दिखाई पडा । ध्योनसिह ने उस बटन को सामने खींचा
बटन के खींचते ही बह दरवाजा चटख कर खुल गया और
सामने एक मेहराबदार बड़ा महल दीख पड़ा |
दरवाजे के खुलते ही लोहे के पीपे वाली खिड़की-जिसमें
होकर पाँचों गिरे थे-झापसे झाप बन्द हो गई । यद॒ तमाशा
देख ध्यानसिंह ने प्रतनाथ से कहा-ऊपर की राह तो बन्द-
हो गई ऐसा न हो कि हमारे बाहर पेर घरते हो यह दरवाजा
'भी बन्द हो जाय । अच्छा दो कि इस दरवाजे को रस्सी से.
जकड़ कर बाँघ दे । जिससे यह खुला रहे, मुंदने न पाए ।
प्रेतनाथ ने उसका एक पठला रस्सी से बाँध कर बाहर
की परेहराब में खींच कर बाँघ दिया । पॉँचों जन मेहराब वाले
मकान में झाण । देखा तो सारा मकान मेहराबों से भरा है 1
सिवा मेहराबों के ओर कुछ उसे हैं ही नहीं
ध्यानसिंह ने कहा-वाह यह तो अच्छा मलसुलइयाँ का
खेख बना है । यह किस इच्छा से बना है खो रास ही जाने
पर अनजान के लिए तो इसमें भटक २ कर पाश गंघाने का
ब्च्छा सांघन तैयार किया गया है
पाँचों जन पाँच सेहराबों में पेठकर चाहे कि इसका मर्म
दूढ़॒ पर पाॉँचो झसफल ( नाकामयाब ) रहे । घूम फिर कर
पॉँचों. बाहर निकल आए ! बड़ी देर तक वे घूमा फेरी करते
रहे लेकिन भेद न पाए । सोदामिनी ने कहा -इसी प्रकार:
कां. एक सीढ़ीदार घर मुझे भी मिला था । इसमें मेहराबे
हैं उसमें सीढ़ियाँ थीं बस यही दोनों में फर्क है। उसमें
ही
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