हस्तलिखित हिंदी ग्रन्थ [भाग 1] | Hastlikhit Hindi Granth [Part 1]
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
574
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १३ )
पंथ बहुत कल्यान के बरने वेद पुरान ।
बहुतक श्रप शपनें सतें मुनिहू कोने गान ॥ ४॥
मध्य--पृ० पं ॥ शिष्य प्रश्न ॥
है स्वामी कत्यानकर कृष्णाश्रय इक श्राहि ।
सबें श्रोर दुस्साध्य हें कलि मे सफलित नाहि ॥४५९॥।
झापुन तो यों कहत हो श्रोर सरावत श्रान ।
निके. सोहि. समुक्ताइये तिन मे लछन कान ॥५३॥।
॥ श्री गुरु प्रतिउत्तर ॥
सुनिहे पुत्र प्रकास करि कहूं बात जो श्राहि ।
थो बल्लभ के बचन हें श्रा कृष्णाश्रम माहि॥४॥।
कलि मे धर्माचरन सब लोकठगन को हेवु ।
उचित कछू झ्राचनं कछू उदर भरन ,करि लेतु ॥४४५॥
जो मारग श्रपवर्ग के भाखे वेद पुरान ।
कमर ज्ञान उपासेना योगध्यान शझरु श्रान ॥४६।॥।
ते सब नष्ट भये खलू ताको कारन श्रेह॥
कलि के ट्विज उपदेसकर श्रति खल नहिं सदेह ॥४५७॥
शास्त्र भ्र्थ ते विरुद्धमत शझ्रापुन को इक ठानि ।
भपे चलावत ताहि. ते. मोक्षहोन फल जानि ॥|४्८।॥।
झत--हें देस गुज्जर नमंदा तट चारु चडी ग्राम हें ।
ह्वां ज्ञाति नागर विप्र वंष्णव बत्हाभी दया राम हें ॥ '
बल श्री गुरू तिन ग्रंथ रचना करो सब सुखधाम हें'.। «१
शुभघमं पत्तित्रत कहे श्रति प्रिये श्री घनस्याम हें । के 4
जु श्रनन्य टेको भगवदी तिनको लगें प्रिय प्रानतें 1.
जो बहिरमुख श्रीकृष्ण सो तिनकों श्रप्रिय ऋज्ञान ते ॥।
तिन सो न मेरे काम कछु काम तो हरि हरि भक्त हें ।
सो तो प्रसन्न यह वात में मम मन्न जहाँ श्रासक्त हे ॥। .
इति श्रीकृष्ण श्रनन्य चंद्रिका कवि दयाराम कृत सपुरणण समाप्तं ॥। थरीरस्तु वा कल्यारण-
मस्तु ॥ श्री हरी ॥।
विषय--वल्लभ सप्रदाय के सिद्धातानुसार भगवान् की अन्य सेवा का वर्णन । इसी
को गीता के सिद्धात में 'श्रनन्ययोग' कहा है । अनन्यता (अ्रन्याश्रय से बचने) के उपाय एव उसकी
महिमा का वन है ।
दिशेष ज्ञातव्य--इस पुस्तक मे श्रन्य ग्रथ भी लिखे है।
संख्या १४९३. वस्तुव् द नाम दीपिका, रचयिता--दयाराम भाई, स्थान--डभोई
(गुजरात), पत्--२६ (पृ० २३२ से २६० तक), झाकार--€। 2६ ५॥॥। इच, पक्ति (प्रति-
पृष्ठ)--४४, परिमाण (श्रनुष्ट्पू )--१२७६, पूर्ण, रूप--साधारण, पद्य, लिपि--नागरी,
रचनाकाल--स० १८७४ वि ०, लिपिकाल--स० १८६४, प्राप्तिस्थान--श्री सरस्वतीभ डार,
श्री विद्याविभाग, काँकरोली, हि० व० स० ०, पु० स० ४।
ध्रादि--॥श्री गोपीजन बल्लभाय नमः । श्रथ श्री. वस्तु वृ'द नाम दीपिका प्रंथ कवि
दयारामकृत लिख्यते ॥दुहा॥। ३
बदूं श्री गुरुपद कमल सकल , सिद्धि दातार 1,
श्री महाप्रभु गोस्वामी श्री सह श्री. नदकुमार॥ १॥
श
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