प्राचीन - काव्य - कुसुमाकर | Prachin Kavya Kusumakar

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Prachin Kavya Kusumakar by बालासहाय शास्त्री - Balasahay Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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च्चन्द्‌ प्राचीन काव्य-कुसुमाकर श््‌ सा. कवित्त कुट्टिल केस सुदेश, पौहप रचियत पिक्क सद । कमल गंध वय संघ, हंस गति चलह मंद मद ॥| सेत वस्त्र सोहे सरीर, नख स्वाति बुन्दू जस | भमर भँ वहि भुल्लाहि सुभाव, मकरन्द वास रस ॥ नैन निरखि सुख पाय सुक, यहद सदिन मूरति रचिय । उमा श्रसाद हर हेरियत, मिलहिं राज प्रथिराज जिय | 1१२1 द्हा खुक समीप मन कुँवरि को, लग्यी बचन के हेत । अति विचित्र पंडित सुआ, कथत जु कथा अमेत ॥१३॥। गाथा उच्छत बयन सुबाले, उच्चरिय कीर सच्च सच्चाये । कतन नाम तुम देस, कवन यंद करे परवेश ॥१७। उच्चरिय कीर सुनि बयनं, हिन्दवान दिल्‍ली गढ़ अयन॑ । तहाँ इन्द्र अवतार चहुवांन, तहैं प्रथिराजह सूर सुभारं ॥1१४॥। पद्धरी पदमावतीहि कु वरि सैंघत्त, दुज कथा कहत सुनि सुनि सुवत्त ॥१६॥। हिन्दर्वांन थान उत्तम सुदेस, तहूँ डद्त दुग्ग दिल्‍ली सुदेस ।1१७॥। संभरि नरेस चहुवांन थांन, अथिराज तहाँ राजंत भांन ॥१८॥| वैसद्द बरीस पोड़स नरिंद, आजान बाहु भुअ लोक यंद ॥१४।। संभरि नरेश सोमेसपूत, देव॑त रूप अवतार घूत ॥२८॥। सामंत सूर सब्वे श्यपार, भूजांन भीम जिम सार भार ॥२१॥




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