भवभूति का वास्तुविधान - शिल्प | Bhavabhuti Ka Vastuvidhan - Shilp

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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.. तब इनमें से अधिकतर रूपक लॉकनाटक के ही स्वशूप मेद थे । जी मी सदी, यह रक यथार्थ है फि संस्कृत साहित्य में नाटक का स्थान .. सर्वॉपाए रहा हैं । हमाएं नाटककार ने छोकदाष्टि अर शास्त्रदाष्टि दॉनाँ का . समन्वय करत हर जा कलात्मक नाटक हम प्रदान किये हैं वे अपनन-अपन वरशिष्ट्य मं अधितीय हैं | नाटक की कलात्मक अधितीयता की सर्व मर्घन्य नाटककार कालिदास ने स्वर्य इन शबदोँ में रैवाकित किया है-- देवाना मिद्मा मर्नान्त मुनय: शान्तं कृत चादाएण मु रूद्रेण्पे दमुमा कृत व्यत्तिकरे स्वांगे विभक्त दिघा । त्रेगुण्यी दूषवमन्र लौकचरिरित नानारसं दुश्यते रे भः थे. छु थे, है $ नाट्य मिन्कचर्जनस्य बहुघाप्यंक समपाराघधनमु । | कालिदास ने रू बार पन: हर्मे माएत के नाट्यशास्त्र का स्मरण दिछाया हें नाट्यकला, क॑ दात्र में जा महत्व लॉकतत्व को मरत ने दिया था, वहीं काठिदास भी दे रहे है । कवि का बहत सीघा+सा तात्पय यह ह कि मनीणी छाया ने नोटठक करो अभि चिपुर्णं छीगां के लिये आनन्ददायक चादएगा यन कहा हैं । उाटक ढुद्य हैं उप! यह चादाएष समारोह हैं । नटराज शिव ने स्वय उमा के सहयीग से इसे ताण्डव अर _ लास्य नृत्य प्रदान फिये है । यह न्रिगुणात्फ् जीवन का दृश्य विधान करता हैं जत: नाना मावाँ अर रसाँ से मरपरर होता है । सी भाव आँए एस सत्व, एजस आर तमस्‌ गणवृचियाँ की ही अभिव्यक्ति करते हैं । अपनी दृश्य आर श्रव्य विशेषताओं के कारण तथा छोकजीवन की कलात्मक अनुकुति गएण नाटक समाज के मिन्लल भिन्न रुचि वाठ सपी लोगों को अकेछा ही आनन्द विमाौए कर देता है । कादक . विदा. गंग्रदो. पदाइ, . मंददिक,. धिदादि. दाद. याद पफया दंपिपि वादरििक प्यए. पद पदक. याद मामा १- मालविका रिनिमित्रमु, ४ |.




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