भवानी प्रसाद मिश्र का काव्य शिल्प | Bhawani Prasad Mishra Ka Kavya Shilp
श्रेणी : हिंदी / Hindi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
471 MB
कुल पष्ठ :
504
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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इसमें बालकों से योग्य रीति का बर्ताव न करने से उनका नाश होना |
अंग्रेजी फैशन :-
इससे बिगड़कर बालकों का मद्यादि सेवन और स्वधर्म विस्मरण |
बहुजातित्व और बहुभक्तित्व के दोष :-
इससे परस्पर चित्त का न मिलना, इसी से एक दूसरे के सहाय में असमर्थ होना |
पूर्वजज आर्यों की स्तुति :-
इसमें उनके शौर्य, औदार्य, सत्य, चातुर्य विद्यादि गुणों का वर्णन |
हिन्दुस्तान की वस्तु हिन्दोस्तानियों का व्यवहार करना :-
इसकी आवश्यकता इसके गुण इनके न होने से हानि का वर्णन
3. . प्राचीन परिपाटी की कविता-भक्ति और श्रृंगार :-
भारतेन्दु युगीन काव्यधारा में प्राचीन परिपाटी की कविता का सृजन किया है। भक्ति
और श्रृंगार की परम्पराएं भारतेन्दु युग तक चली आई थी | यही कारण है कि भारतेन्द ने स्वयं
तथा उनके अन्य सहयोगियों ने सैकड़ों पद पुराने भक्त कवियों की परिपाटी पर बना डाले |
भारतेन्दु को एक भक्त हृदय प्राप्त था, उनके भक्ति पदों में भक्त हृदय की स्निग्धता देखने
को मिलती है
“ ब्रज के लता पता मोहि की जै।
गोपी पद पंकज पावन की रज जामैं सिर भीजं |
श्री राधे मुख यह वर मुँह मांग्यों हरि दीजै |
भारतेन्दु ने रीति, परिपाटी, पर बहुत सी कविताएँ की है। उनकी प्रेम माधुरी' में
पद्माकर तथा देव का श्या श्रंगार वर्णन मिलता है।
” सजि सेज रंग के महल में उमंग भरी |
पिय गर लागी काम-कसक मिटायें लेत
श्रूगार काल की पद्धति पर कविता करने वालों में भारतेन्दु युग के बाबू राधाकुष्ण दास गद
. का भी नाम उल्लेखनीय है-
मोहन की यह मोहनी मूरत, जो सो भूलत नाहिं भुलाये
छोरन चाहत नेह को नातों, कोऊ विधि छूटत नौंहि छरायें
भारतेन्दु युग की कविता में केवल
डी
श्रृंगार काल की ही परम्परा नहीं है उसमें भक्ति
युगीन परम्परा भी जीवित है फिर इसकी अभि
अभिव्य ही में सूरदास के पद और तुलसी की विनय......... |
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