सम्मति प्रकरण | Sammati Prakarana

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Sammati Prakarana by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्७ पृष्ठोंक: .... विषय: ९४ इश्यानुपलम्भ के विविध विकल्प €६ कारणानुपलस्भ से ज्ञातुष्पापार का अमाव- का, निश्चय श्रशवय ९६ विरघोपलब्धि से ज्ञातृव्यापाराभाव का भनिश्चिय €७ श्र्थप्राकद्यरूप के अमाव साधन का घ्निश्वय ९७ कारणातुपलम्भ और व्यापकानुपलम्भ से साधनाभाव का ध्रनिश्नय ९८ सत्त्व हेतु ये क्षणिकत्व के साधन का असंभव ९९ साधनाभाव का विश्वय बिरुद्ोपलब्धि से अशक्‍्य ९९ लभावप्रमाण ते व्यत्रिक का निश्नय दुःशवय १०० अस्यवस्तुज्ञाव से ब्यतिरेफ निश्चय का असंभव १०१ साधनास्य स्वाइ्साव के ज्ञान से साधनाभाव का निश्चय अशक्य १०३ अज्ञात प्रमाणपन््कतियूत्ति से अमावज्ञान १०४ प्रासड्धिक्समावप्रमाणनिराकरणस १०४ मीसासकमान्य अभाव प्रमाण मिथ्या है १०१५ प्रतियोगिस्मरण से श्रमाव प्रमाण की | व्यवस्था दु्घेड १०५ असावप्रमाणपक्ष में चक्रकाबतार १०६ अभाधप्रभाण से प्रतियोगिनिवृत्ति की असिद्धि १०६ अमसाव गुहदीत होने पर प्रतियोगी का निणेध केसे? १०७ स्वयं अनिश्चित अमावप्रसाण निरुपयोगों १०७ अभावप्रसाण के निश्चय में ग्रलवस्थादि १०६ नियमरूप संघन्ध का प्रन्य कोई निश्नापक ह नहीं १०९ व्यापार सिद्धि के लिये नविन कल्पनाएँ १०६ अजन्य सावरूप व्यापार नित्य है या श्रलित्य ११० व्यापार कालास्तरस्थायि नहीं हो सकता ११० क्षणिक प्रजस्य व्यापार पक्ष भी अपुक्त है १११ जन्य व्यापार क्वियारूप था भ्रक्तियारूप ? १११ अक्तियात्मक व्यापार ज्ञानरूप है या गग ख्प? पृष्ठांक: घिषय: ११२ ज्ञातृष्यापार घमंरूप है या घमिरुप ? ११२ घ्यापार की उत्पत्ति में म्रन्य व्यापार को जपेक्षा है या नहीं ? ११३ व्यापार को लन्य व्यापार की श्रपेक्षा है या नहीं ? ११४ चस्तुस्वरूप के भनिश्वय की आपत्ति अशव्य ११४ व्यापार लर्थापत्तिमम्य होते का कथन श्रयुक्त ११४ एकज्ञातृव्यापार और स्वेज्ञातृव्यापार अर्था- पत्तिगस्थ कंसे ? ११५ अथेप्रकाशता की अनुपपत्ति से ज्ञातृव्यापार दे की सिद्धि भ्रसंभव ११६ श्रथप्रकाशता घर्मे निश्चित है था अनिश्चित ? ११६ भ्र्थापत्ति-अनुमान में अभेद की आपत्ति ११७ साध्यघमि में भ्रन्यथामुपपत्ति का निश्चय किस प्रमाण से ? ११७ अर्थापत्तिस्थापक अर्थ घ्रौर लिंग में तात्विक +. भेद का श्रभाव ११८ भर्थसंवेदनलूप लिंग से ज्ञातृव्यापार की सिद्धि विकल्पग्रस्त ११६ अर्थाप्रतिसासस्वभाव संबेदन संभव नहीं १२० व्यापार और कारकसंबंध का पौर्वापर्य कैसे ? १२० शुन्यवादादि भय से स्मृतिप्रमोषास्युपगस १९१ ज्ञानसिथ्यात्वपक्ष मे परत प्रामाण्यापत्ति १२२ रजत का संवेदन प्रत्यक्षरुप या स्मुतिरुप ? १२३ शुक्ति प्रतिभासमातन होने पर स्मुतिप्रभोष दु्घट है १९३ सीप का प्रतिभास और रन्नत का स्मृति- ज प्रमोष अयुक्त है १९४ स्मृति की अनुभवरूप मे प्रतीति में घिप- रीतल्याति प्रसंग १२४ च्यापारवादी को स्वदर्शनव्याधात्तप्रसक्ति १२४ स्मृत्तिप्रमोष के स्वीकार में भी परत: प्रामाण्य का भय १२५ स्मृतिप्रमोषस्वीकार में शून्यवाद भय स्मृतिप्रमोद के ऊपर विकल्पन्रयी




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