सम्यक्त्व सूर्योदय जैन | Samyaktva Suryodaya Jain

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Samyaktva Suryodaya Jain by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ए हीं है जिसकी अन्यथा श्रज्मा अर्थात्‌ विस्मृति नहदीं,-छात्पज् नददीं, (सन्ने) झानसंझा छार्था- तू केवलक्ञानी सर्वक्ञ, (लवमाण विड्ञाइं) ड-. पमा न विद्यते अर्थात्‌ इस संसार में कोइ ऐसी चस्तु नहीं कि जिसकी लपमा ईश्वर को दी जावे, (झरुवीसत्ता) झरूपीपन, (छापय सपयनत्थी) स्थावर जंगम 'ावस्था विशेष नत्यी, (न सदे) शब्द नहीं, (न रूवें? कोइ रूप विरोष नहीं 'र्यात्‌ झ्याम, श्वेत 'छादि वर्ण नहीं, (न गधे) गन्धि नहीं, (न रसे) म थु, कट 'छादि रस नहीं, (न फासे? शीतो- ष्णादिक स्पशे नहीं, (चले इति, (तावती) इ- त्यावत्‌, (तिव्बेमि) ब्रवीमि-कढ़ता ढु च्यारिया --यद महिमा तो सुक्त पद की कही दे, इश्वरकी नहीं जनी --उरे जोले ! सुक्त दे सो ईश्वर है, ध्यौर इश्वर है सो सुक्त दे इस स्थानमें सुक्त नाम ईश्वर का दी दे




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