परमचरिउ भाग १ | Paumchhriu Vol-1

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Paumchhriu Vol-1 by देवेन्द्र कुमार जैन - Devendra Kumar Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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परमचरिड “दब शस्त पडस रिड' भौर द्धप अरिड की मिज्ञताको साफ बता रहा है। दो सकता दे कि “पंचमी 'बरिद का तरह 'सुद्धब अरिद स्वपम्सूकी रचबा रद हो । डॉ. सायाली “सुद्धब अरिद' को सप्म्य हलि मावते दें चइ्दीकर्मा दै। पर डबका कदबा दे कि कडिने तोता प्रत्व अकूरे थोषे खिल्दं थाइसें बिमुबनने पूरा किया । इसके तीन कारण हैं :-- स0प बे सौररि ने अ का मिज्न-स्ति आपवसे किखा लाता । (श)प च के सेलजर्ये लजिक लम्तराक पहला । (३) ९३ भौर ण९ में सब्विधोक प्रारम्भम कबिने लये सिरेसे मंगकाइरस किसे दें थे कम्मे चिराम के चोतक हैं इससे घी सम्मादवा लडिक हैं कि कषिने पहली कृति धषूरी होते हुए मी दूसरी रभा शुरू कर थी दोसी ।. भा डॉ. भाषार्थीकरे नगुसार तारों प्रल्य लप्रे थे । को. दीराकाक बैतक्म लमिमत कि “'पढ्मचिड पूरा था पर 'रि ने अ. सम्मंचत' कलिके स्याकत- स्मिक लिधतसे भ्षूरा रइ गपा डसे पुत्र दिमुबधते पूरा किया । इस हरइ दो बैनका मठ उक्त दो मतों थीधका दि । इस निधाषसे पूक बात सर्वसम्मत दे कि किक रचसाधोस कप झंडा प्रच्ि था परिवर्जित है। भर देखता पइ दै कि कच्त्छी पूर्व रचलाधंसिं संश बलाये गये था छू रचनाजोर्तिं । इस सम्बस्थम प्रेसा जीका सत दीक दे । इसी सरइ डॉ. साथाजीके कठिपष ठकं रक्त हैं फिर सी सभी कृतियाँ लबूरी बहीं साबी ला सकती । पक तो डॉ. भापालीने 'उन्यरिलि' शब्दका भ्रस्तोप खलक लें तदों किया दूसरे *पडमचरिद की १३ भीर इ३ की सम्चियोंके संगकाचरण करने चिरामडे लीं लपितु कथाके भये सोइके चोतक हैं । थे मोष हैं रामकय बरचास थीर राम-शादल पुद्धकी सूसिक्य । चइ बात बमती लीं कि कोई कि समी रचनाएँ भजूरी छोड़ लापया । थद तप्ब डॉ. साथाजी भी स्वीकार करते हैं कि स्वबम्पूने साम्पद्दाबिक था अनावश्यक जटतारोंक्षों छोषने संकोच सही किया । लइ स्पद दे




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