गांधीजी की दें | Gandhiji Ki Den
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
126
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about राजेंद्र प्रसाद - Rajendra Prasad
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शक चांबौजौ कौ महानता
'चक्ते हैं? दारोपासाइब ने पांधौजी से इसकी सिऋायत की । मसांबीजी
मे घरलीवादू से पृष्य कि बहां शापके साथ दारोगाजी ही था बैठते
थे कि मौर भी कोई 7. बकौससाइय ने कहा कि ब्यों किसात भी बैठते
थे। तब गांधीजी ने कहा--' जब उठने किसानों के बैठने से आपको कोई
हर्ज गही होता हैं तो सिर्फ एक और आवसी के मिस थाने पर आप क्यों
पदराते हैं? आप दोगों में मेद ही गर्यों करते है ? आड़, जात पड़ता है बाप
दारोगाजी सै डरते है। उस बिचारे को मी किसामों के साथ क्यों गही
बैठने देते ? यह बिनोव सूतकर किसान तो निर्मीक हो ही मये दारोधाजी
को काटो तो झूग लही । लाज से ड़ गये । बांधीजी ने जग्हें मामूसी
किसारतों के बीच सित दिया । रस दिन से बकीड़साइव तो गिर्मप हो
गये किसात भी जिस्कुछ मिडर होकर तिकष्ों के सामने उनके शरया-
चारो का बयात करने लगे ।
गाधौजी के मत में मय के लिए जगइ ही कैसे हो सकती है? बहा तो
कुछ छिपाकर कहते या करने का बिल्कुल काम ही नहीं। बडा तो मन
अचत शौर कर्म की एकता हैं। देधारे शुफ्टिगा पूलिसवाते बहा से कित्त
भेद का पता रूगापसे ? सांबीजी के मिदारों के अगुसार जौ सौ कुछ करते या
करता शाहते उनमें किसी तरह के छिपान की प्रबूत्ति मे होती 'भाहिए।
इसक्तिए हम शोगो कै सामने लुफिमा पुष्ठिस कप भय खत्म हो गया !
बित्तू महात्मागी गहाणक सब बातों को प्रकासित करते रहुसा
चाहिए, इसकी मी सीमा रखते है क्योकि बह तो लमत्थय करके चले हैं।
एक उदाहरण से हम लोग समन्त जासगे कि बह छोलकर गहने या स
बहते मे कैसा सुन्दर लमम्बप रखते है। जिस दिल इस छोम चम्पारत में
स्यस्त थे मौर एक पर्मणाला में डंरा डाले हुए थे बग्ही दिनों एक रात हम
धोम लुछो छत पर अपर दिन कौ दितदर्या पर बैठकर विचार कर रहे थे ।
एक साथ बैठगर ऐला रोज हो कर छिया करते थे। एक सर्जन जिनके
गाज बौर इृूनियों से सब लोग परिचित थे और जिस्होंनि डिखुस्ताम भर इस
भारत मे बागृति शाने में फास्से हब बराया था एक रात बह शहसा मा
User Reviews
No Reviews | Add Yours...