वन देवी | Van Devi

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Van Devi  by बाल दत्त पाण्डेय - Bal Dutt Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रस यूप-दूवी | यक्ालत कर घृणित उपायोंसे देशका धन ससरेवाली भाशा-देवी दुरदीसे चलसस्कार किया भोर माद-भूमिके सच्चे सेवकय्ती पाचार-पीड़िंत असहायों तथा अनाधोच्ती दूशा खुधारनेफे पदिन्न नाय्यंमें हाथ लगाया । - जर्सीदारीके कास काजकी देखभाल आप पिताके समयसे ही फरने कगे थे । उनके शरीरान्तके उपरान्त उसमें आपने खूव लिक्ती। किसानोंकी उन्नति फरनेके खत आपने नये नये उपाय निकाले । सबसे चिना संकोच मिलते, उनकी दुः्ख-चार्ता छुनदे घोर आवश्यकतानुसार उनके अभावोंको दर करनेका उपाय: करते । प्रज्ञा इन्दे अपना सच्चा उद्घारक समगती | आप अपने यदि मामले खयं निपटाते । सन्ध्या-समय सारे घामोंरे निंदृत्त हो दुरवाज़े की खुली हुई प्शशपर आरशाम-कुर्खी डाठकर देते ही छोग इन्हें घर लेते । चढ़े पड़े पेचीके सामले पेश होते : पर: वे उन्हें वड़ी सरख्तासे सलया देते । प्रजा घ्रफूल्ल-चित्त, नत- मस्तक उसे स्वीकार करती । इस प्रकार अदालतमें सहसों रुपये चृधा नर न होते । अदालतका कभी कोई नाम भी न छेता ; उस ओरसे सबको विरक्ति सी हो गई थी । कहींपर लड़ाई कगड़े तथा मारकाटका नास ही न सुन पड़ता। चारों ओर खुख और शान्ति विराजती थी । अत्य सहयोगी जमींदारों तथा सरकारी कम्मेंचारस्योंकी साँति आए प्रजाको घन पेदा'करवेवाली मशीन न ससकते थे | आपका ध्यान था कि, सबक ही हमारे * अक्षदाता हैं । उन्दींकी नस ३1 त, 2 प्र




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