वन देवी | Van Devi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
102
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रस यूप-दूवी |
यक्ालत कर घृणित उपायोंसे देशका धन ससरेवाली भाशा-देवी
दुरदीसे चलसस्कार किया भोर माद-भूमिके सच्चे सेवकय्ती
पाचार-पीड़िंत असहायों तथा अनाधोच्ती दूशा खुधारनेफे
पदिन्न नाय्यंमें हाथ लगाया ।
- जर्सीदारीके कास काजकी देखभाल आप पिताके समयसे ही
फरने कगे थे । उनके शरीरान्तके उपरान्त उसमें आपने खूव
लिक्ती। किसानोंकी उन्नति फरनेके खत आपने नये नये
उपाय निकाले । सबसे चिना संकोच मिलते, उनकी दुः्ख-चार्ता
छुनदे घोर आवश्यकतानुसार उनके अभावोंको दर करनेका
उपाय: करते । प्रज्ञा इन्दे अपना सच्चा उद्घारक समगती | आप
अपने यदि मामले खयं निपटाते । सन्ध्या-समय सारे घामोंरे
निंदृत्त हो दुरवाज़े की खुली हुई प्शशपर आरशाम-कुर्खी डाठकर
देते ही छोग इन्हें घर लेते । चढ़े पड़े पेचीके सामले पेश होते :
पर: वे उन्हें वड़ी सरख्तासे सलया देते । प्रजा घ्रफूल्ल-चित्त, नत-
मस्तक उसे स्वीकार करती । इस प्रकार अदालतमें सहसों रुपये
चृधा नर न होते । अदालतका कभी कोई नाम भी न छेता ; उस
ओरसे सबको विरक्ति सी हो गई थी । कहींपर लड़ाई कगड़े तथा
मारकाटका नास ही न सुन पड़ता। चारों ओर खुख और
शान्ति विराजती थी ।
अत्य सहयोगी जमींदारों तथा सरकारी कम्मेंचारस्योंकी
साँति आए प्रजाको घन पेदा'करवेवाली मशीन न ससकते थे |
आपका ध्यान था कि, सबक ही हमारे * अक्षदाता हैं । उन्दींकी
नस
३1
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