आचार्य श्री तुलसी : जीवन-दर्शन | Acharya Shri Tulsi : Jeevan-Darshan

Acharya Shri Tulsi : Jeevan-Darshan by मुनि बुद्धमल्ल - Muni Buddhamall

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विषय प्रवेश श्राचार्यश्री तुलसी तेरापथ के नवम श्राचार्य हैं। उनके झनुलासन में च्तमान मे तेरापय ने जो उन्नति की है, वह श्रभ्नृतप्रूव॑ कही जा सकती है। प्रचार श्रौर प्रसार के क्षेत्र मे भी इस श्रदसर पर तेरापय ने यहूत डा सामय्यं प्राप्त किया है । जन-सम्पर्क का क्षेत्र भी श्राश्ात्तीत रूप में विस्तीरणं हुआ है। सक्षेप में कहा जाए तो यह समय तेरापय के लिए स्तुर्मुखी प्रगति का रहा है । श्राचार्येश्री ने श्रपता समस्त समय सघ की इस प्रगति के लिए ही श्रपित कर दिया है । वे श्रपनी शारीरिक सुविधा- असुविधाश्रो की भी परवाह किये बिना अनवरत इसी कार्य मे जुटे रहते हैं। इसीलिए श्राचायंश्री के शासन-काल को तेरापय के प्रगर्ति-काल या विकास-काल की सनज्ञा दी जा सकती है । श्राचायंश्री का बाह्य तथा श्रान्तरिंक--दोनों ही प्रकार का व्यवितित्व चडा धाकर्पक श्रौर महत्त्वपूर्ण है । मेंकला कद, गौर वर्ण, प्रदस्त ललाट, तीखी श्रौर उठी हुई नाक, गहराई तक भांकती हुई तेज श्राँखें, लम्बे कान ब भरा हुआ श्राकपंक मुखमण्डल--यह है उनका वाह व्यक्तित्व । 'दर्शक उन्हे देखकर महात्मा बुद्ध की झाकृति की एक भऋलक श्रनायास ही या लेता है । श्रनेक नवागन्तुकों के मुख से उनकी श्रौर बुद्ध की तुलना की वातें मैंने स्वय सुनी हैं । दर्शक एक क्षण के लिए उन्हें देखकर भाव- विभोरसा हो जाता है । उनका थ्रान्तरिक व्यविततत्व उससे भी कही बढ- कर है। वे एक घ्मं सम्प्रदाय के झाचायें होते हुए भी सभी सम्प्रदायो की विदेषताभ्रो का भ्रादर करते हैं श्रौर सहिप्णुता के श्राघार पर उन सबमे नैकद्य स्थापित करना चाहते हैं । वे मानवतावादी हैं, श्रत.




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