जैन तत्त्व मीमांसा | Jain Tattva Mimansa

Jain Tattva Mimansa by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १५ ) प्रत्येक कार्यका उपादान श्रनन्तर पूर्व पर्याय विशिष्ट द्रव्य होता है भ्रतएव प्रगलें समयमें कार्य भी उसीके श्रनुरूप होगा । कार्यकी उत्पत्तिके समग्र निमित्त उसे भ्रस्यथा नहीं परिणमा सकेगा, इसलिए जो उपादानकी श्रपेक्षा कथन हैं वह यथार्थ है श्ौर जो निमित्तकी श्रदेक्षा कथन हैं वह यथार्थ तो नही है परन्तु वहाँ पर निमित्त वया हैं यह दिखलानेके लिए वैसा कथन किया गया है । श्रतएव ऐसे स्थलोपर भी जड़ा जिस श्रपेक्षासि कथन हो उसे समभकर वस्तुको स्वीकार करना चाहिए। इसी प्रकार श्रौर भी बहुतसे विपय हैं जिनमें वस्तुका निर्णय करते समय श्रौर उनका व्याख्यान करते समय विचारकी श्रावश्यकता है । हमें प्रसन्नता है कि 'जेनतत्त्वमीमासा' ग्रन्थमें पणिडतजीने उन सब विपयोका समावेश कर लिया है जिनमें तत्त्वजिज्ञासुग्नोकी दृष्टि स्पष्ट होनेकी श्रावश्य- कता हैं । इस ट्प्टिसि यह पुस्तक बहुत ही उपयोगी वन गई है । इसवी लेखनशैली सरल, सुस्पप्ट श्रौर सुवोध हैं । पशिडतजी के इम समयोपयोगों साम्कृतिक साहित्यिक सेवाकी जितनी प्रशसा की जाय थोडी है। हमे विश्वास है कि समाज इससे लाभ उठाकर श्रपनी ज्ञानवृद्धि करेगी । जेन शिक्षा सस्था ो जगन्मोदनलाल शास्त्री कटनी




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