जैन संप्रदाय शिक्षा | Jain Sampraday Shiksha

लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
30 MB
कुल पष्ठ :
766
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रथम अध्याय ॥ थ्
चाहिये, किन्तु उन में शक्ा नहीं करनी चाहिये ॥ यह सन्धियूत्रकम से प्रथम चरण
समाप्त हुआ ॥
यह प्रथम अध्याय का व्याकरण विषय नामक दूसरा प्रकरण समाप्त हुआ ॥
तीसरा श्रकरण ( वंणविचार ).
१--भाषा उसे कहते हैं जिसके द्वारा मनुष्य अपने मन के विचार का प्रकाश करता है ॥
२--माषा वाक््यों से, वाक्य पदों से और पद अक्षरों से बनते हैं |
३--व्याकरण उस विद्या को कहते है जिसके पढ़ने से मनुष्य को शुद्ध २ बोछने
अथवा छिखने का ज्ञान दोता है ॥
४--व्याकरण के मुख्य तीन भाग है--व्णविचार; शब्दसाधन और वाक्यविन्यास ॥
५--वणेविचार में अक्षरों के आकार, उच्चारण और उनकी मिलावट आदि का वर्णन है ॥
६---शब्दसाधन में शब्दों के भेद, अवस्था और व्युत्पत्ति का वर्णन है ॥
७--वाक्यविन्यास में शब्दों से वाक्य बनाने की रीति का वर्णन है|
वर्णविचार ॥
१--जक्षर-शब्द के उस खंड का नाम है जिस का विभाग नहीं हो सकता ॥
२--जक्षर दो प्रकार के होते है खर और व्यज्ञन ॥
३२--खर उन्हें कहते हैं जिनका उच्चारण अपने आप ही हो ॥
४--खरोंके इस और दी ये दो भेद है, इन्दीं को एकमात्रिक व द्विमान्रिक भी कहते हैं ॥
५--व्यकषैन उन्हें कहते है जिनका उच्चारण खरकी सद्दायता बिना नहीं हो सकता ||
६--अनुखार और विसग भी एक प्रकार के व्यज्न माने गये है ॥
७--किसी अक्षर के आगे कार शब्द जोड़ने से वही अक्षर समझा जाता है। जैसे क वा
काकार इत्यादि ॥
८--जवतक खर किसी व्यज्ञन से नदी मिछ्ते तबतक अपने असठी खरूप में रहते हैं
परन्दु मिठने पर मात्रारूप में हो जाते हैं. जैसे कु+अ-्क, कूकइन्कि, कूकउन्कु
कुप-एन्के, इत्यादि |
वि न सन लिलकस्थयसस्ययततस्रिसिसिसिससिय 222
१. यद्यपि यद्द प्रकरण व्णीविचार नामेक्र दै तथापि उसका आरंभ करने से पूर्व व्याकरण की कुछ आव-
इगक चाते भथम दिखाई गई दे ॥. २--खय राजन्त इति स्वरा: ॥ ३--अन्वगू भवति व्यज्ननमू.॥
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