दयानंद के मूल सिद्धांत की होति | Dayanand Ke Mool Siddhant Ki Hoti
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
627 KB
कुल पष्ठ :
30
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १५
पृथ ८१ गुण क्माजुसार घ्राह्मणादि के छड़के लड़कियों का
घदला करना । प ६३ चीस भाने सेकड़े से अधिक ब्याज
आर सूल़ से दूना सौ वप में भी न लेना देना पूष्ठ ६२ घ्रह्मादि
साठ -प्रकार के .विवाद्द लक्षण सहित न पृष्ठ ६७ उत्तम ख्री
आदि सब देश तथा सच मनुष्यों से श्रद्श करे । निन्दा-
स्तुति का.लक्षण। पृष्ठ १०६ चेश्वदेव दिधि पूण। पुष्ट
१७१. रोज दरड की व्यवस्था पृष्ठ १८८ उपासना समय मन
को नासि प्रदेश था हृदय करठ नेत्र शिखा अथवा पीछ के
मंध्य दाइमें गकेसी स्थान पर स्थिर करता । पृष्ठ १६४ ईएवंर
निकालदर्शी कहना सूखता व्या काम है इत्यादि । पृष्ठ २२४
मनुष्यों को भादि सष्टि तिव्वत में हुई । ' 'आर्यावत्त की थ-
वधि । पृष्ठ २४२ पश्च कोंपों को व्याख्या । एप ९५८-निपे-
कादि संस्कारों की व्याज्या भोर् सच शिखा सहित छंदन
करा देना पृष्ठ ४७७ सुरदे के फेंकने की चिधि जो चेद यो नाम
से छिखी है कि मुरदे के शरीर बराचर घी हो इत्यादि कोई
सददाशय सत्याधथघ्रकाश के इतने ही लेखों का स्वामी के लेखा
नुसार चेदों में.दिखावे परन्दु यह सर्चथा असस्भव दै उन के
माने हुए चेदों में ( चार शाखाओं में ) एक विपयक्री व्याख्या
सी पूर्णतया नहीं मिछ * सकती 'सन्न्न घ्रांझणात्मक संस्पू्ण
वेद भर शषि मुनि कृत सदुग्नन्थों के माने थिना विधि नि
पेंघ रूप घर्साघर्म का यथाचत् निणय कदापि नंहों हो सकता
झखों सत्यार्थप्रकाश के एप ३७७ में तुम्दारे शुरु ही ने: लिखा
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