अस्टावकगीता | ास्तवकगीता
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
258
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जापादीकासहिता | (१३)
विपयमें आसक्ति न करके चेतन्यरूप आत्माके
विपयमें विश्राम करके परमानदको प्राप्त हो॥५॥
घमाधघमासुख दुम्ख मानसान न ताविभा।
नकतास नमाकतास सुक्त एवास सवद्ा॥
पन्वय! है विभी ! घमौधर्मो सुखस् दुमखम . मानसानि तन
1 त्वम् ) करती न असि भोक्ता न जसि -( किननु ) सर्पदा मुक्त
एवं आस ॥ ६ ॥।
तहां शिष्य प्रश्न करता हक, वेदोक्त वणा-
श्रमके कर्मों को त्यागकर आत्माके पिषें विश्राम
. करनेमेंभी तो अधमंरूप प्रत्यवाय होता
तिसका गुरु समाधान करते हैं कि; हे शिष्य !
' धर्म, अपमं, सुख और दुःख यह तो मनका
' संकल्प है. तिस कारण तिन धर्माधमांदिके
साथ तेरा त्रिकालमेंभी संबंध नहीं हे । तू
: कर्ता नहीं है; 'तू भोक्ता नहीं है; क्योंकि विहित
। अथवा निपिद्ध कम. करता है; . वही सुख
! दुखका मोक्ता है । सो तुझमें नहीं है क्योंकि
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