अस्टावकगीता | ास्तवकगीता

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ास्तवकगीता  by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जापादीकासहिता | (१३) विपयमें आसक्ति न करके चेतन्यरूप आत्माके विपयमें विश्राम करके परमानदको प्राप्त हो॥५॥ घमाधघमासुख दुम्ख मानसान न ताविभा। नकतास नमाकतास सुक्त एवास सवद्ा॥ पन्वय! है विभी ! घमौधर्मो सुखस्‌ दुमखम . मानसानि तन 1 त्वम्‌ ) करती न असि भोक्ता न जसि -( किननु ) सर्पदा मुक्त एवं आस ॥ ६ ॥। तहां शिष्य प्रश्न करता हक, वेदोक्त वणा- श्रमके कर्मों को त्यागकर आत्माके पिषें विश्राम . करनेमेंभी तो अधमंरूप प्रत्यवाय होता तिसका गुरु समाधान करते हैं कि; हे शिष्य ! ' धर्म, अपमं, सुख और दुःख यह तो मनका ' संकल्प है. तिस कारण तिन धर्माधमांदिके साथ तेरा त्रिकालमेंभी संबंध नहीं हे । तू : कर्ता नहीं है; 'तू भोक्ता नहीं है; क्योंकि विहित । अथवा निपिद्ध कम. करता है; . वही सुख ! दुखका मोक्ता है । सो तुझमें नहीं है क्योंकि




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