ढाई हजार अनमोल बोल [संत-वाणी] | Dhai Hazaar Anmol Bol [Sant-Vani]

Book Image : ढाई हजार अनमोल बोल [संत-वाणी] - Dhai Hazaar Anmol Bol [Sant-Vani]

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about भवनेश्वरनाथजी मिश्र 'माधव' - Bhuvneshwar Ji Mishra 'Madhav'

Add Infomation AboutBhuvneshwar Ji MishraMadhav'

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
खंत-वाणी पद ...... ६७-समभी मनजुप्य जन्म-जन्मान्तरमें कभी-न-कभी मगवानको देखेंगे ही । . ६८-सूईके छेदमें तागा पहनाना चाहते हो तो उसे पतला करो । मनको इश्वरमें पिरोना चाहते हो तो दीन-हीन-अक्ब्विन वनों ६९-भक्तका हृदय सगवानकी वैठक है । ७०-संसारमें जो जितना सह सकता है चद्द उतना ही महात्मा है । ७१-जिसका मनर्प चुंवकयंत्र भगवानके चरणकमलॉंकी ओर रहता है उसके इत्र जाने या राह भूढनेका डर नहीं । ७२-साधनकी राहमें कई बार गिरना-उठना होता है फिर समय भा जानेपर साधन ठीक हो जाता है | ७३-सर्वदा सत्य बोछना चाहिये । कलिकाक्में सत्यका आश्रय छेनेके बाद और किसी साधनका काम नहीं । सत्य ही कलिकालकी तपस्या है । ७४-संसारके यष्ा और निन्दाकी कोई परवा न करके ईश्वरके पथमें चलना चाहिये | ७५-एक महात्माकी कृपासे कितने ही जीवोंका उद्धार हो जाता है | ७६-साघक्क़े भीतर यदिं कुछ भी आसक्ति है तो समस्त साधना व्यर्थ चली जायगी ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now