ढाई हजार अनमोल बोल [संत-वाणी] | Dhai Hazaar Anmol Bol [Sant-Vani]
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
354
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about भवनेश्वरनाथजी मिश्र 'माधव' - Bhuvneshwar Ji Mishra 'Madhav'
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)खंत-वाणी पद
...... ६७-समभी मनजुप्य जन्म-जन्मान्तरमें कभी-न-कभी मगवानको
देखेंगे ही । .
६८-सूईके छेदमें तागा पहनाना चाहते हो तो उसे पतला
करो । मनको इश्वरमें पिरोना चाहते हो तो दीन-हीन-अक्ब्विन
वनों
६९-भक्तका हृदय सगवानकी वैठक है ।
७०-संसारमें जो जितना सह सकता है चद्द उतना ही
महात्मा है ।
७१-जिसका मनर्प चुंवकयंत्र भगवानके चरणकमलॉंकी ओर
रहता है उसके इत्र जाने या राह भूढनेका डर नहीं ।
७२-साधनकी राहमें कई बार गिरना-उठना होता है फिर
समय भा जानेपर साधन ठीक हो जाता है |
७३-सर्वदा सत्य बोछना चाहिये । कलिकाक्में सत्यका
आश्रय छेनेके बाद और किसी साधनका काम नहीं । सत्य ही
कलिकालकी तपस्या है ।
७४-संसारके यष्ा और निन्दाकी कोई परवा न करके
ईश्वरके पथमें चलना चाहिये |
७५-एक महात्माकी कृपासे कितने ही जीवोंका उद्धार हो
जाता है |
७६-साघक्क़े भीतर यदिं कुछ भी आसक्ति है तो समस्त
साधना व्यर्थ चली जायगी ।
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