प्रवचनसार | Pravachansar

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Pravachansar by वृन्दावनजी - Vrindavanjii

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सटननने: न न उन जा, | ड पीठिका । , हर ह पी के |) अरिद्लछन्द 1 £.. ट्वादशांगको सार जु छुपरविचार है! ! सो संजमजुत गददत होत भव पार है ॥| पं £.. तायु हेत यह शासन परम उदार है। )| यातें प्रवचनसार नामदिरघार है ॥ ९८ !। द , श्रीमत्कुन्दहन्दाचायंकी हा ५ डर .. सूलग्रन्थकर्ता श्रीमत्न्दं स्तुति। | अशोकपुष्पमंजरी । । जासके मुखारविंदर्ते भकाश भास दूँद, [ 1. स्ादवाद जेन चेन इंद कुंदकुंदसे । हर ् तासके अभ्यास विकाश भेदज्ञान होत, £..... मूढ सो ठखे नहीं कुवुद्धि कुंदकुँदसे ॥| क र देत हैं अशीस शीस चाय इंद्र चंद्र जाहि, र ि मोह-मार-खंड मारतंड कुंदकुंदसे । के || शुद्धवुद्धिवृद्धिदा पसिद्धरिद्धिसिद्धिंदा; र पल हुए, न हैं, न होहिंगे, मुनिंद कुदकुद से ॥ १९ ॥ इ पर इति भूमिका । ! !! 1 )| || हि दुटबनन्नकडटिटटरसननट्िटटरटुटनननन्किटुनननगन्िसननणेट्र मकि




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