योगिभक्ति प्रवचन | Yogibhakti Pravachan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
158
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)गाथा है १३
बात है। मन लगायें झसार कामोंम छोर यदां सारभूत फामके लिए
उत्साह नहीं हैं, प्रेम नहीं है । जेसे कि घरके का्मोंको झपना काम समझा
जाता है; जो कि अपने हैं भी नहीं; झौर यहा यह झपना दम है झात्मा
की वात, झात्माफें स्वरूपका व्यान; यहां दृष्टि लगाना; इसे झपना काम
नहीं समका जा रहा है धर छासार भिन्न मायारूप, जिनमें भलाईका
नाम नहीं उनको समसा जाता कि ये मेरे काम हैं। यदद जीवन 'मोसकी
बुदिफी तरह चचल है--ध्तपस्थितिक है। थोड़े समयमें नष्ट होनेको
है। हम कुछ द्वितकी बात कर लें तो यह मेरी भलाईकी बातहटोगी ।
धंभबको चचलताका चिन्तन--योगीजन जो शान्तिके लिए एकान्त
बनका छाश्रय करते हैं उनना यह चिन्तन चल रद है कि यह सार। बेभव
बिजलीके समान विनश्वर है; जेसे मेघोंमें विजल्ली चमकती है तो बह
ढदरती नहीं, चमछी नहीं कि खत्म, क्षणमात्रमें दी नष्ट हो जाने बाली है,
इसी प्रकार यह बिभूति मी उस बियुतू की तरद कषणमात्रमें नष्ट हो जाने
वली है भौर कुछ ठहर भी गया तो कितनी देर ठह्रेगा । ,उसे यों समझ
लो कि मेघोंके समान चचल दै। जैसे मेघ थोदा ठदर गए श्र फिर
यथाशीघ्र बिखर कर समाप्त हो जाते हैं इसी तरह यह वेभव भी थोड़े
काल ठहर कर बिखर जाने बाला है। तो ये सब समागम बिद्यत्तको
तरह छथवा मेघके समान अत्यन्त चंचल हूैं। ये सब चिन्तन वे योगीजन
कर रहे हैं जिनको झष ससार, शरीर: भोगोंमिं प्रीति नहीं रही । प्रीति
न रहने के ये सारे कारण इस छंदुमें बताये ज। रहे हैं। ये सारे समागम
एक शरीरके झारामके ही तो साधन हैं; झात्माकें झारामके साधन नहीं
हैं बोर शरीर हैं सो यदद जन्म जरा मरण रोगकर भरा हुआ हैं, भिन्न
चीज है। उसके घारामफे साधनोंको जोढकर हम 'झपने सकट क्यों मोल
लें ? हम झपने को ससारमें क्यों रुकायें ? झतएप इस दुष्ट शरीरके
चारासके साधनोंमें जब प्रीति न रहीं ती अब उन साधनोंमें रहे कोन ?
छौर फिर कदाचित् शरीरके साधन बना लो, पर उसका फल तो बढ़ा
कठोर है। नरक नेसे दु खॉंको भोगना पढ़ता हैं। से झव इस शरोरके
साघनोंमें रुचि हीं रही ।
5 योगियोंका प्रार्मलाभके योगका उद्यम--धत कुछ गददरा चिन्तन किया
गया है कि इस चल वेभबके पीछे झपने जीवनको न खोवों और बह
जीवन भी एक कोस चूदकी तर क्षणस्थायी हैं। झा तो जितना शेष
जीवन है बह जीवन पक आत्माकी सेवामें लगे इसीमें मलाई है। इन
समस्त बातॉंका चिन्तन करके सुनिजन झात्मशान्तिके लिए बसके भन्तमें
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