अनुकम्पा - विचार भाग - 2 | Anukampa - Vichar Bhag - 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
328
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)3 श्री वीतरागाय नम. ३
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ग्रलुकम्णा-विचार ::
_ (द्वितीय बाग,
क. दादा . &8
साघु जीव मारे नहीं, . पर ने हे पर। .
भलो न जाये मारियां, त्रिकंरंण शुद्ध विचार ॥ १ ॥
भावाथ:--साघु किसी' जीव की स्वयं ' मारते नहीं और
दूँसरो से मरवाते नही -अझथोल जीव को मारने के ;लिए दूसरों को
कहते नहीं तथा जीव सारने घाले का अनुसोदन सी नही ,करेते ।
इस प्रकार साधु तीन ,करंश तीन योग से हिसा के त्यागी
होत है श। ' .. , . न
णे, हणावे गंणे, परजीवाँ रा . श्राण |
तीन करण हिंसा कही, श्री जिन बचने प्रमा . । है |...
सावाथं:-जो जीवों को,स्वयं सारता है, दूसरों, से सर-
बाता है यौर जीवों को मारने वाले का 'अंजुसोदन करता 'है बद
पुरुप तीन करण से अथोत/करना; करना और अजुमोदूना इन
व
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