अनुकम्पा - विचार भाग - 2 | Anukampa - Vichar Bhag - 2

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Anukampa - Vichar Bhag - 2 by हीरालाल -Heeralal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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3 श्री वीतरागाय नम. ३ त् कक कि ग्रलुकम्णा-विचार :: _ (द्वितीय बाग, क. दादा . &8 साघु जीव मारे नहीं, . पर ने हे पर। . भलो न जाये मारियां, त्रिकंरंण शुद्ध विचार ॥ १ ॥ भावाथ:--साघु किसी' जीव की स्वयं ' मारते नहीं और दूँसरो से मरवाते नही -अझथोल जीव को मारने के ;लिए दूसरों को कहते नहीं तथा जीव सारने घाले का अनुसोदन सी नही ,करेते । इस प्रकार साधु तीन ,करंश तीन योग से हिसा के त्यागी होत है श। ' .. , . न णे, हणावे गंणे, परजीवाँ रा . श्राण | तीन करण हिंसा कही, श्री जिन बचने प्रमा . । है |... सावाथं:-जो जीवों को,स्वयं सारता है, दूसरों, से सर- बाता है यौर जीवों को मारने वाले का 'अंजुसोदन करता 'है बद पुरुप तीन करण से अथोत/करना; करना और अजुमोदूना इन व न




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