कहानी - कला | Kahani Kala
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
148
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कहनी-कैला की विकास श१
के आकार-प्रकार और उसको रूपरेखा को बुँधली आकरति
दिखाई पढ़ने उभी थी । कहानियों से शिक्षा को सामजस्य किस
मकर होना चाहिए, इसके बारे में कोई निश्चित नियम नहीं
पस पाया था
१९११ ई० में भ्रसादजी की पहली कहानी प्रा” मकाशित
दुई | उसके बाद हिन्दी-साहित्य में एक प्रकार से कहानियों का
युग आरम्भ हुआ | मेमचन्दजी अपनी सीधी भौर सरल भाषा
के कारण सवपरिय हो गये । कौशिकजी, उवालापुत्तेजी भौर
सुदशनजी को कहानियों की खूब सथातति हुई ।
बीसर्बी शर्ताब्द की तीसरी दूर्शान्दि सें युरोप की तथा अन्य
प्रान्तीय भाषाओं के अनुवाद दिन्दी में अति दिन बढ़ने ऊगे ।
मौखिक कहू।नी-साहित्य का भी खूब विस्तार हुआ । ऐसा प्रतीत
होने छुपा कि जो दिन्दी कहानियाँ अन्य देशो की उुलना में दो
तीन शतोष्दि पीछे रद्द गई, अब ऊु्छ ही नर्षो में अपना पिछड़ा
हुआ मागे तय करके, स्पद्धी के साथ विश्व-कथा-साहित्य की
अगली पंक्ति में आ बंठेंगी ।
टेकनिक की इष्टि से प्रसादजी की कहानियों का हल्दी से
अधिक महत्व है । उनकी आँघी, घोसू , मधुआ, बिलाती, पुर्कार
आदि कहानियाँ बढुर्त चत्छ बन पढ़ी है. |
+ न +
इधर एक शतान्दि में कद्ारनियों को रूप-रेख। में नगतिकारी
परिवसन हुए हैं । प्राचीन ककासियों में जो उपदेशात्मक और
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