मनोवैज्ञानिक अनुभव | Manovaigyanik Anubhav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मनोविश्लेषण पिज्ञाव और कामवासन। श्धुनिक मनो विशान की सबसे मदत्त की सखोब सनोविश्टोधण विसान को खोज है । मनोविश्सेषण विद्ान के चन्मदाता डा० फ्रायर् हैं। इनको स्वोनें युगभवतक सिद्ध हुई हैं । डा० क्रायड एक योगी चिकित्सक थे । श्रतएव रोगियों की चिकित्सा करते हुए. ही उन्होंने महत्व की सनोवैदानिक स्तोजें पदले उन लोगों के संवंध में की, जिन्दें किसी प्रकार का मानलिक रोग था, फिर वे उन्दीं खोबों को सामान्य लोगों के व्यवद्ारों को समकाने के काम में लाये । इस प्रकार डा० अगयढ न केवल मानसिक रोगियों के विधव में विशेष प्रकार से संबंध रखते थे, वरन्‌ उनकी स्वोजों का श्रधिक मदर्व सामान्य लोगों के व्यनद्वार से संबंधित है । फ्रायड के सिद्धान्त जत्र स्वस्य श्र सामान्य मनोविज्ञान में दत्त रखने लगे, तब उनके छिद्धोन्तों को जाननी प्रत्येक निन्तनशील व्यक्ति के णिये श्रावश्यक दोगया | डा० फ्रायड के कथनाउुछार सपुष्य का समह्त जीवन कामतालनासय नि ब्र्थात्‌ यौमिक है | व्यक्ति के समुचित यौनिक विकास से मयुष्य का व्यक्तित्व स्वस्थ श्रौर सामान्य रत है । नर उ्का यौनिक विकास ठीक से नहीं दोता तो उसके नीवन में अनेक प्रकार की श्रसाधारणता श्राती है। यौनिक सिद्धान्त के ऊपर डा० क्राधड ने मानव व्यवहार की अनेक ऐसी बातें समकाई हैं, दो कि अन्यया नहीं समभकाई ना सकती यीं । विक्ञण यौन चेषायें, समलिंगी यौमिक व्यवढार, नपुंतकत। आदि बातें डा० फ्रायड के यौनिक सिद्धान्त के द्वारा मानसिक रोग की श्रवत्था की साकेतिक चेष्टायें, लो «1घार्थत- निरस्थेंक दिलाई देती हैं, श्रौर रोगों के विशेष प्रकार जैसे ६ठी विचार, रुठीक्रिया, हिस्टीरिया, शकारण मय आदि समभाये जा सकते दे । फायड भदाशय इन सभी अ्कार की झलाघारण- ताश्रों को यौनिक विकास को रुकावट के कारण बताते हैं | यदि मनुष्य का योनिक विकास ठीक से हो तो न तो उत्के व्यवद्।र में किली प्रकार की श्रसाधारखणता वे, न उसे विभिन प्रभार के मानसिक रोग हों श्रौर न वद समा से झपना समन्वय स्थापित करने में असमर्थ दो | डा फायड ने यौनिक बिक की पाँच भिन्न-भिन्न श्रवस्थायें चताई ्द इन पाँचों वस्याश्रों मे योनिक क्रियाओं का उद्देश्य श्र श्राश्रय मिस्न-मिनन होता है | तभी यौनिक भिवाश्रों का श्रेंतिभ लय सुख की प्राप्ति ढोती है | यढ सुस्त विकास की मिन्न अवस्या में शरीर के सिन-सिन केद्द्रों से श्रीर सिन-मिन क्रियाओं से मिलता है । डा० फायड की बताई हुई योनिक विकास की ५ झवस्थायें सिम्स लिखित हैं |




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