मार्क्सवादी सौन्दर्यशास्त्र | Marksavadi Saundaryashastra

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Marksavadi Saundaryashastra  by कमला प्रसाद - Kamala Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कली त्रौर समाज --कालें सावस और फ्र डरिक एंगेल्स एक “संस्कृति के इतिहास की भीतिकवादी धारणा थ अपने जीवन के सामाजिक उत्पादन में मनुष्य ऐसे निश्चित सम्बन्धों में बँघते हैं जो अपरिहायं एवं उनकी इच्छा से स्वतंत्र होते हैं। उत्पादन के ये सम्बन्ध, उत्पादन की भौतिक शक्तियों के विकास की एक निश्चित मंजिल के अनुरूप होते हैं । इन उत्पादन सम्बन्धों का पूर्ण समाहार ही समाज का आर्थिक ढाँचा है-- वह असली बुनियाद है जिस पर कानून और राजनीति का ऊपरी ढाँचा खड़ा हो जाता है और जिसके अनुकूल ही सामाजिक चेतना के निश्चित रूप होते हैं। भौतिक जीवन की उत्पादन-पद्धति जोवन की आम सामाजिक, राजनीतिक भौर वौद्धिक प्रक्रिया को निर्धारित करती है । ड मनुष्यों की चेतना उनके अस्तित्व को निर्धारित नहीं करती, बल्कि उल्टे उनका सामाजिक अस्तित्व उनकी चेतना को निर्धारित करता है । अपने विकास 'की एक खास मंजिल पर पहुँचकर समाज की भौतिक उत्पादन शक्ति तत्कालीन उत्पादन सम्वन्धों से या उसी चीज को कानूनी शब्दावली में यों कहा जा सकता है--उन सम्पत्ति सम्वन्धों से टकराती है, जिनके अंतगंत वे उस समय तक काम “करती होती हैं । ये सम्बन्ध उत्पादन शक्तियों के विकास के अनुरूप न रह कर हा का वेड़ियाँ बन जाती है । तव सामाजिक क्रांति का एक नया युग शुरू होता है । आर्थिक बुनियाद के बदलने के साथ समस्त वृहदाकार ऊपरी ढाँचा भी 'कमो- . . वेश तेजी से वदल जाता है। ऐसे रूपांतरणों पर विचार करते हुए एक भेद : हमेशा ध्यान में रखना चाहिए कि एक भोर तो उत्पादन की आर्थिक परिस्थिलियों का भौतिक रूपांतरण है, जो प्रकृति विज्ञान की अचूकता के साथ निर्धारित किया . कला भौर समाज : १




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