गद्य - सौरभ भाग - 3 | Gadya - Saurabh Bhag - 3

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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क्र *लरिभौध' ने ' ढेठ हिन्दी का ठाठ* और * अवखिला फूल? नागफ दो रुतियाँ ठियी। . इस तरह आधुनिक कहानी और उपन्यास का आरम ब्रदी सानव के साथ विभिन्न गयडलिया मे हुआ |. मावाभिव्यक्ति के लिए जिस सहजता जीर जि मार्मिफता की आवश्यकता हाती है वह दस समय भापा में जाने त्पी | शी यालक्र्ण भट्ट और उनसू सहयोगिया न॑ बिभिन्न पिपया पर सिवत्य साहित्य के निर्माण के लिए पहले ही स नीब डाली थी ।. ' लरस्वती ? के सपादफीय के रूप में प्रकाशित्त जाचार्य द्विवटी जी के निबत्ध काफी महत्त्वपूर्ण से जीर जाज भी ₹ |. माधा की झुद्दता के ताथ साथ विचारा में प्राजलता ऊाकर सपादकरर शाचार्य दिवदी जी ने हिन्दी की जो महत्वपूर्ण सेवा की उससे पहिदी की झाक्ति काफी बढ़ी | अब उसमें हर तरह के बिपय पर निंगन्ध लिखे जा सकें थे और छिखे जान लगे |. स्वयम आचार्य जी ने ऐसे निमन्वो के नमने यस्तुत करके लेखिका का मार्गदर्गन भी कराया ।. शी बालसुकुद सुस का ' शिवगयु का चिद्ठा” लैसे हास्परस पूर्ण निमन्ध भी निकलने छगे। दस समय की एक प्रिशेपता यह रही कि यह सडीवोछी हिन्दी जब केबल गया तक सीसित न रहकर काव्य फे क्षेत्र में भी पदार्पण कर चली | इसी हिथति में समाछोचना साहित्य फा मी सूजन हुआ । बाय दयामसुद्रदास जी ने आछोचनात्मक निमन्ध ल्खि | बाबू जी ने री ए और एम ए, तक के उच्च से उच्च ब्गों में हिन्दी साहित्य की पढाई को अनिवारम समझा और उसके लिए, प्रयल भी फ़िया तथा सफल भी हुए |. आपने श्र ही मार्मिक ओर सयिचार पर्ग निबन्व लिखे. ' गोस्वामी ठुलसीदास, मारतन्दु दर््रिया जीर साहित्य की महत्ता” नामक निषन्व याब जी की साहित्यिक सुरुचि के हाथ आपके पैसे पास्पीपन का भी परिचय देत हैं। इस आलोचना के क्षेत्र में आपका काफी ऊँचा स्थान है | आी रामव्वद्रश्ुक जी ने तो अपने फ्चारपूर्ण निबधा के यारा हिन्दी साहित्य के सठार में प्फ़ ने घुग का ही प्रयतैन कर दिया।. युछेरी जी के




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