कला की ओर | Kala Ki Or

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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द] [ भारतीय कला तथा हाव-भावों से सीधा सम्बन्ध है.। परन्तु योरपीय कला. में माँसल प्रभाव इतना श्रधिक होता है. कि अंत: प्रकृति का सौन्दय उसमें छिप जाता है। और व्यक्ति सूदम रसानुभूति से वंचित रहता है। भारतीय कला में शारीरिक अंग भंगिमाओं और मुद्राओं का अंकन और तद्नुकूल रसों का सृजन सब से अधिक महत्व के विषय हैं । काल्पनिक. योरपीय कला अत्यधिक यथाथे है इसलिए उसका डश्य-योजना दृश्य-चित्रण वास्तविक ( 1२८5८) और अआक- स्मिक (0 (टत€ 011) होता है। योरपीय कलाकार बहुधा एक दृश्य को एक निश्चित दृष्टिकीण से अंकित करता है । इस के विरुद्ध भारतीय कला का टश्य-चित्रण काल्पनिक होता है । उसमें विभिन्न समयों के एक ही स्थान के चित्र, विभिन्न स्थानों के एक ही समय के चित्र श्रौर विभिन्न समयों के विभिन्न स्थानों के चित्र एक साथ अंकित किए जाते हैं। इसके लिए या तो चित्रको कुछ ऊंचाई से देखा जाता है या चित्र की रचना एक दृष्टि विन्दु ( रि०ाए1 01 धाा0ा ) से न करके अनेक दृष्टि विन्दु्छों से की जाती है । संक्षेप में, भारतीय कलाकार दृश्य-रचसा एक विशेष दृष्टि विन्दु से न करके वनेक दृश्य विन्दुओं से दृश्य को खूब धघूम-फिर कर देख कर करता है । या भारतीय-कला की सबसे बडी विशेषता उसका रेखांकन फैन है | यहाँ रेखाओं से मतलब झाकार-बोधक ( 1रि0ा00 ९2 [1€१४॥2 ) रेखाओं से नहीं है किन्तु गतिशील और सशक्त रेखाओं से है जो भाव के साथ साथ अंकित की जाती हैं । भारतीय रेखा सब शक्तिमान होती हैं । भारतीय कला में केवल रेखाओं द्वारा ही प्रत्येक प्रकार की श्रंग भंगिमाएं मुद्रा तथा वस्तगत गोलाई, उभार पसेपैक्टिव के भाव सभी कुछ स्पष्ट कर दिये गये हैं । इन रेखाओं में सबंत्र एक सूचमता रहती है जो उसको श्रात्म-सौन्दय प्रदान करती




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