युग पुरुष महात्मा गांधी भाग 1 | Yug Purush Mahatma Gandhi Bhag 1
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
27 MB
कुल पष्ठ :
299
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
प्रो० भ० प्र० पांथरी- Prof. B. P. Panthari
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मनोहरलाल - Manoharlal
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)युग-पुरुष
करोब डेढ़ सो वर्षोतक सारतका उत्तर पश्चिमी प्रान्त परशियाके
साधाज्यका अंश बनाही रहा । सारतके इस प्रान्तकों पाकर
परशिया अपनेको धन्य समसने लगा । और बात थी ठीक थी,
क्योंकि अकेठा भारतीय प्रान्त परशियाकों साठाना ३०० टेलेन्ट
सुबण अथातू करीब १२५०० सन सोना दिया करता था । इतना
सोना परशियन साश्नाज्यके अन्य २० प्रान्त सिलकर भी मुश्किठसे
दे पाते थे । यह अपार सोनाही था जिसने परशियन लोगोंको ही
नहीं; अपितु कई एक दूसरे विदेशी लुटेरोंको भी हसारे मुल्कपर
घावा करनेके लिए समय समयपर न्योता दिया है |
परशियनोंके वाद चौथी झताद्दि ई. पू. में यूनानियों ने भी
हमारे इसी वैभवकों लूटनेके छिए भारतबषंपर हसला किया था।
अलक्ेन्द्र (सिकन्द्र) इस यूनानी हमलेका नेता था । सन् ३२७-
३०२६ ई० पू०में बह काबुलके द्रबाजेसे हमारे मुल्कमें घुसा ।
उस समय उत्तर पश्चिसमें बहुतसी श्रजातंत्र रियासतें थीं !
यद्यपि शासन आर व्यवस्थाके विचारसे ये रियासतें बहुतहदी
सुशासित और विकसित थीं; किन्तु इनमें परस्पर कोई मेछ न था ।
अपने राज्य अथवा रियासतके प्रेमके सिवाय इनमें पूर्णदेशीय
राष्ट्रीयवा न थी । इसलिए विदेशी आक्रमणकारीके खिलाफ वे
कोई संयुक्त मोचों कायम न कर सके । परिणाम यह हुआ कि
सिकन्दरने एक-एक करके सारे प्रजातंत्रोंको विनष्ट कर डाला ।
किन्तु पंजाबके महाराज पुरुसे विजय हासिल करनेमें उसे काफी
मूल्य चुकाना पड़ा था । अतः पुरुके पौरुष और बलसे थककर
एवं डरकर अलक्ेन्द्रकी फोजें आगे बढ़नेका साहस न कर सकीं
और पंजाबसे ही वापिस हो गईं । लौटते समय अलदेन्द्र
श्ठ
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