स्वप्न और जागरण | Swapn Aur Jagaran

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Swapn Aur Jagaran by देवराज - Devraj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पथ की खोज दोते हैं । फिर मुक्ते समय नहीं सिलता । लेखक में सोचने की शक्ति होनी चाहिये, शरीर एकाग्रता की । मेरा जीवन बिजिनेस में रहता है; दिसाग को फुप्त कहा, एकाग्रता कहां... ..मैं कैसे लिख सकता हूँ । पुस्तक मैं आपके पास भेज दूगा, झ्ापकों पसन्द आयेगी |” और उसने चन्द्रनाथ से उसके कालेज का पता पूछा । चन्द्रनाथ ने मन में सोचा कि उस अनुभवी युवक की पुस्तक अवश्य ही रोचक होगी । पर इतने छोटे परिचय में वह उसका इतना विश्वास क्यों करने लगा यह उसकी समक में नहीं श्राया । दोपहर में भोजन के समय चन्द्रनाथ और इन्द्रमोइन फिर साथ हो गये । भी थालिया श्राने में देर थो, दोनों बाते करने लगे । इन्द्र- मोहन ने पूछा-- प्रोफेसर साहब श्राप शादीशुदा हैं ?' 'मेरी पत्नी की डेढ़-दो वर्ष हुये सृत्यु हो गई ।” “उसके बाद १ श्रमी तक शादी नहीं की ?' “नहीं, कुछ कारणों से । श्रापका तिवाह हो चुका है ?” “भी नहीं । मेरा विश्वास है प्रोफेसर साहब कि श्रादमी जब तक बहुत-सा सपया जमा न कर ले; उसे शादी नहीं करनी चाहिये । उसके बिना आपको अच्छी लड़की नहीं मिल सकती, न श्ापकीं “होम लाइफ़'” (पारिवारिक जीवन) ही सुखी हो सकती है । क्योंकि बीबी को 'खुश रखने के लिये सचसे जरूरी चीज है--रुपया । श्राप इससे पहले कहीं श्रौर सर्विस करते थे ?? पतन | वर “यो ! तब आपने बहुत जल्द शादी कर ली थी । मैंने प्रोफेसर साहब, फैजाबाद में हाल ही में कुछ जमीन खरीदी है । (श्राप जानते हैं मुक्ते बराप-दादा का माल कुछ भी नहीं मिला, एक मकान भी नहीं क्योंकि मेरे कई भाई हैं और मकान छोटा-सा ही है 1) मैं चाहता हूँ कि उसपर एक बढ़िया सा बंगला बना ले, तब शादी करू |”




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