यशोधरा परिशीलन | Yasodhara Pariseelan

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Book Image : यशोधरा परिशीलन  - Yasodhara Pariseelan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(६ सर्वत्र, जातीय श्र राष्ट्रीय, नैतिक और धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक, सास्कृतिक चेतना से युक्त कर रखा है। गुप्तजी के काव्य में युग जीवन को प्रेरित श्र संचालित करनेवाली सभी विचार-धाराश्रो और परम्परा ने साम्य रूप से स्थान प्राप्त किया है | उनका काव्य सर्वाज्ञीण शऔर व्यापक रूप से आधुनिक युग का प्रतिनिधि सिद्ध होता है । इस लिए गुप्त जी आधुनिक युग के ग्रतिनिधि कवि कहे जा सकते हैं । जिस समय गुप्तजी ने हिन्दी-काव्य-क्षेत्र में पदार्पण किया; उस समय आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी के संरक्षण में खड़ी बोली हिन्दी कविता का माध्यम बनने का उपक्रम कर रही थी । यह वह समय था, जब श्रीघर पाठक खड़ी बोली श्र त्रज दोनो के आकंषण मे फंस कर अपने लिए; कविता का कोई भी माध्यम निश्चित नहीं कर पा रहें थे । यद्यपि “एकान्त वासी” योगी के रूप मे उन्होंने खडी बोली मे कविता करने का श्राभास दिया था, परन्तु उनकी मनोबत्ति बार-बार उन्हे श्रज की आर झआकृष्ट कर रही थी । “'काश्मीर सुखमा” लिखकर आपने अपने श्रापको सिद्धहस्त कोमल कान्त के रूप में प्रकट किया है। उनका ब्रजभाषा पर स्नेह अन्त तक लक्षित होता है । उनकी कविता-कामिनी श्रज श्रौर खडी बोली के पालने में लोरी लेती है | अन्य शब्दों मे पाठकजी को खड़ी बोली के प्रवर्तक का श्रेय दिया जा सकता है, किन्तु उनकी अ्रास्था न्रज के ही प्रति थी। एक ओर हरिश्रोधजी अपने प्रियप्रवास द्वारा हिन्दी मे युगान्तर उपस्थित कर रहे थ, दूसरी आर श्री मेथिलीशरण गुप्त आचार्य द्िंवेदीजी के स्त्रप्नो को कार्य रूप में परिणत कर अपने कत्तेव्य का पालन कर रहे थे । गुप्त जी को कविता को हम निम्न वर्गों मे विभक्त कर सकते है | १ राष्ट्रय-वेदना । २ सांस्कृतिक सन्देश । । ३ युग जोबन की चिन्ता धारा ।




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