आय - कर के प्रारंभिक सिद्धांत | Elements Of Income -tex

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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झध्याय रे? कर-दायित्व (१ ०ड-रण्ाि) धारा ३ के भ्रनुसार प्रत्येक व्यक्ति से उसकी कुल श्राय (प्र'009] 1060706) के सम्बन्ध में भ्राय-कर लिया जाता है, जबकि धारा ४ में कुल झ्ाय के क्षेत्र की व्याख्या की गयी है । किसी व्यक्ति की कुल श्राय को उसके नियास स्थान (968:06006) के हिसाब से निश्चय किया जाता है जबकि निवास स्थान का झ्राश्य उसके गत वर्ष के निवास स्थान से है । कर-दाताओ का निवास स्थान (रि०७10ें७प्८७ 0 ै.55685665) निवास-स्थान के बिचार से श्राय-कर दाताश्रों को तीन वर्गों में विभाजित किया गया है-- (अर) व्यक्ति जो भारत में निवास नहीं करते हो । (झा) व्यक्ति जो भारत में निवास करते हो किन्तु वहाँ के साधारण निवासी (68166 पर 00 0एत0 119 68106) न हो । (इ) व्यक्ति जो भारत मे निवास करते हो श्रौर वहाँ के साधारण निवासी (68108 906. 0एता0क्षा11प क6816600 हो । कोई झाय-कर-दाता किस वर्ग से आता है, इसका निणय कई बातो पर निर्भर है, जिन पर श्शय-कर निर्धारण के हेतु, प्रत्येक वष पुर्वावचार कियां जाता है । परिस्थितियों के श्रनुसार श्राय-कर दाता किसी एक वर्ष के लिये निवासी (९6४10) और दूसरे वर्ष के लिये परदेशी (00170-76816600) हो सकता है । इनमे से प्रत्येक वर्ग पर एक भिन्न श्राधार पर कर लगाया जाता है । श्राय कर- दाता व्यक्ति, हिन्दू श्रविभाजित परिवार, कम्पनी, फर्म अथवा कोई अन्य जन-मण्डल हो सकता हे । इनके निवास-स्थान' (76810 67106) को निश्चयू निम्नलिखित नियमों “के द्वारा होता है । डर




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