आय - कर के प्रारंभिक सिद्धांत | Elements Of Income -tex
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
252
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)झध्याय रे?
कर-दायित्व
(१ ०ड-रण्ाि)
धारा ३ के भ्रनुसार प्रत्येक व्यक्ति से उसकी कुल श्राय (प्र'009] 1060706)
के सम्बन्ध में भ्राय-कर लिया जाता है, जबकि धारा ४ में कुल झ्ाय के क्षेत्र की व्याख्या
की गयी है । किसी व्यक्ति की कुल श्राय को उसके नियास स्थान (968:06006) के
हिसाब से निश्चय किया जाता है जबकि निवास स्थान का झ्राश्य उसके गत वर्ष के
निवास स्थान से है ।
कर-दाताओ का निवास स्थान
(रि०७10ें७प्८७ 0 ै.55685665)
निवास-स्थान के बिचार से श्राय-कर दाताश्रों को तीन वर्गों में विभाजित
किया गया है--
(अर) व्यक्ति जो भारत में निवास नहीं करते हो ।
(झा) व्यक्ति जो भारत में निवास करते हो किन्तु वहाँ के साधारण निवासी
(68166 पर 00 0एत0 119 68106) न हो ।
(इ) व्यक्ति जो भारत मे निवास करते हो श्रौर वहाँ के साधारण निवासी
(68108 906. 0एता0क्षा11प क6816600 हो ।
कोई झाय-कर-दाता किस वर्ग से आता है, इसका निणय कई बातो पर निर्भर
है, जिन पर श्शय-कर निर्धारण के हेतु, प्रत्येक वष पुर्वावचार कियां जाता है ।
परिस्थितियों के श्रनुसार श्राय-कर दाता किसी एक वर्ष के लिये निवासी (९6४10)
और दूसरे वर्ष के लिये परदेशी (00170-76816600) हो सकता है ।
इनमे से प्रत्येक वर्ग पर एक भिन्न श्राधार पर कर लगाया जाता है । श्राय कर-
दाता व्यक्ति, हिन्दू श्रविभाजित परिवार, कम्पनी, फर्म अथवा कोई अन्य जन-मण्डल
हो सकता हे । इनके निवास-स्थान' (76810 67106) को निश्चयू निम्नलिखित नियमों “के
द्वारा होता है ।
डर
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