रामकृष्ण - विवेकानन्द दर्शन में अद्वैत की भूमिका | Ram Krishna Vivekanand Darshan Men Advait Ki Bhumika

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Ram Krishna Vivekanand Darshan Men Advait Ki Bhumika  by चन्दा वर्मा - Chanda Varma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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परिस्थितियां पैदा हो गई थीं कि बौद्ध दार्शनिकों को केवल श्रुतियों की अपौरुषेयता की दुदाई देने मात्र से परास्त नहीं किया जा सकता था, इसी प्रकार यह समय भी वेदों की अपौरुषेयता की 'दुहाई देने का नहीं था। इस समय तो आवश्यकता थी एक व्यक्तित्व की जो विज्ञान और भीतिकता के आक्रमण को विशुद्ध तर्क के शरों से रोकता और अध्यात्मतत्त्व की युक्ति संगत व्याख्या करता। इस समय आवश्यकता थी एक ऐसे युगपुरुष की जो नाना प्रकार के मत मतान्तरों में से सबको जोड़ने वाली कड़ियों को ढूँढ़ निकालकर उनके पारस्परिक विद्वेष को कम करता। स्वामी विवेकानन्द का आविर्भाव ठीक ऐसे ही तिमिराच्छन्नकाल में हुआ था। स्वामी विवेकानन्द जिनका बचपन का नाम नरेन्द्र था, 12 जनवरी सन्‌ 1863 ई० को कलकत्ता के सुप्रसिद्ध दत्त परिवार में पैदा हुए थे। उनके पिता विश्वनाथ दत्त बड़े दयालु और संवेदनशील व्यक्ति थे और उनकी माता भुवनेश्वरी देवी बड़ी बुद्धिमान और ईश्वरभक्त महिला थीं । उनकी माँ ने रामायण और महाभारत को पूर्णरूप से कण्ठस्थ कर लिया था। नरेन्द्रनाथ के चरित्र और मस्तिष्क के विकास पर उनकी माँ का अटूट प्रभाव पड़ा था। छः वर्ष की अवस्था में नरेन्द्र ने व्याकरण 'मुग्धबोध' तथा रामायण और महाभारत के बुहत से श्लोकों को कण्ठस्थ कर लिया। सात वर्ष की अवस्था में नरेन्द्र ने अंग्रेजी, बंगला साहित्य और भारतीय इतिहास का ज्ञान प्राप्त किया। प्रथम श्रेणी में हाईस्कूल की परीक्षा पास करने के बाद वे कलकत्ता के प्रेसेडेन्सी कालेज में भर्ती हुए। उस कालेज में नरेन्द्र ने अंग्रेजी साहित्य, युरोपीय इतिहास, पाश्चात्य दर्शन, विज्ञान, कला, संगीत और चिकित्सा विज्ञान का अध्ययन किया। पाश्चात्य दार्शनिकों में उनकी स्पेंसर, मिल, काण्ट और शोपेनहावर में विशेष रुचि थी। इन दार्शनिकों के गम्भीर अध्ययन ने उन्हें सर्वतोमुखी प्रतिभा का धनी व्यक्ति बना दिया। युवक नरेन्द्र जिज्ञासु था। ब्रह्म साक्षात्कार के बिना उसकी जिज्ञासा तृप्त नहीं हो सकती थी। इसी जिज्ञासा की पूर्ति के लिए वह महर्षि देवेन्द्र नाथ टैगोर से मिला। मिलते ही उसने उनसे पूछा-' श्रीमान्‌ू ! क्या आपने ईश्वर का दर्शन किया है?' महर्षि इस प्रश्न को सुनकर आश्चर्य- (9)




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