व्यक्ति और व्यक्तित्व | Vyakti Aur Vyaktitv
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
178
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about कपिलदेव नारायणसिंह "सुहृद" - Kapildev Narayan Singh 'Suhrid'
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)देशरत्न डॉ० राजेन्द्र प्रसाद जि
राजा राधिका रमण प्रसाद सिंह, पण्डित रामदहिनसिश्र, झाचार्य शिव पुजन सहाय श्रादि ने
किया था । राजिन्द्रबाबू की स्तुति या स्तवन से सम्बद्ध कविताझो का सचयन यदि किया
जाय तो ज्ञात होगा कि उन पर जितनी कविताएँ रची गयी उतनी कविताएँ महात्मा
गाँधी के सिवा शायद किसी जन नायक पर नही रची गयी श्रौर राजे-द्र बाबू के गुणों की
पूजा का भर है गाँधीवाद की पूजा क्योंकि--
“युगल पुण्य झालोक उतर
भारत मे केन्द्रीभूत हुमा ।
एक बना राजेन्द्र, एक से...
गुरु गाँधी उद्भुत हुमा ।”
वस्तुत जिस प्रकार गाँधी जी महात्मा बुद्ध के नवीन सस्करण थे, उसी प्रकार
राजेन्द्र बाबू गाँधी जी के नवीन सस्करण थे। लेकिन भोजपुरी के विख्यात कवि
शी रघुवी रनारायण ने राजेन्द्र बाबू से सम्बद्ध श्रपना जो सस्मरण लिपिबद्ध क्या है वह
यहाँ विस्मरणीय नही है--“शभ्राप एक प्रकार से मेरे स्कूली साथी हैं। हम दोनो का
विद्यार्थी जीवन समसामधिक था । श्रापसे मैं दो या तीन वर्ष श्रागे था। जिस समय
हम लोग छपरा जिला स्कूल के विद्यार्थी थे, उस समय दो महान् व्यविति उसी स्कूल में
भ्रध्यापक थे--राय साहब राजेन्द्र प्रवाद जी, जिनकी दिद्वत्ता श्ौर साधुता की छाप
भ्राज भी बिहार में बहुतो पर पाई जाती है, श्रौर बाबू रसिकलाल जी, जिनको झ्रपने
शिष्य (राजेन्द्र बाबू ) पर बडा गवं था श्रौर जो श्रापके सयाना होने तक भी जहा-कही
भेट होती तो श्रापको श्रवदय शिक्षा एव मत्रणा देते थे । ये उन श्रघ्यापको मे थे, जो
प्रपने छात्रों से उस्तादों का पूरा हक वसूल करते हैं। श्रौर, जो लोग स्वर्गीय राय साहब
को देख चुके हैं श्रौर उनके स्वभाव से परिचित है, वे यह कहे बिना नहीं रह सकते कि
राजेन्द्र बाबू भी उन्हीं के समान मघुरभाषी, त्याग-मूर्ति श्रौर साधु है । श्राप पर साधघुता
की पहली छाप स्वर्गीय राय साइब की ही पड़ी, गाघी जी की उसके बाद । राय-
साहब की गढ़ी हुई साधूता-प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा गाँघी जी ने की ।””
राजेन्द्र बाबू ने गाँधी जी को १९१६ ई० में लखनऊ काँग्रेस के भ्रवसर पर
पहले-पहल देखा था । वे केवल यह जानते थे कि गाँधी जी ने दक्षिण श्रफ्रीका
में कोई बडा श्रौर श्रच्छा काम किया है, लेकिन वे काम की जानकारी नहीं रखते थे ।
लखनऊ काँप्रेस के कुछ दिनों के बाद अखिल भारत वर्षीय कॉग्रेस समिति की बैठक
कलकत्ते मे हुई । इस बठक मे राजेन्द्र बाबू गाँधी जी की बगलवाली कुर्सी पर ही बे ठे,
लेकिन एक दाब्द भी उनसे नहीं बोले क्योकि बे श्रागे बढकर जान-पहचान करना
नद्दी जानते थे। बंठक के बाद गाँधी जी श्री रामकुमार शुवल के साथ राजेन्द्र बाबू
के छेरे पर पहुँचे श्रौर राजेन्द्र बाबू कलकत्ते से जगन्नाथ पुरी चले गये । कलकत्ते मे न
रामकुमार शुक्ल ने राजेन्द्र बाबू को गाँधी जी का कायंक्रम बताया था ने राजिन्द्र बाबू
User Reviews
No Reviews | Add Yours...