बालकृष्ण भट्ट | Balkrishna Bhatt
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
200
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१६
प्रदीप के बुझने की नौबत श्राई पर श्रपना स्नेह उड़ेल कर उसे बुभते नहीं
देते थे ।
एक बात श्रौर कहना है । श्रौर उसका स्पष्टीकरण नितान्त प्रावश्यक
है । पाठक इन संस्मरणों को केवल संस्मरण के रूप में पढ़े । केवल इनके
सहारे भट्टजी के सम्पुणा व्यक्तित्व के चित्रण करने का प्रयास न करें, नहीं
तो गलती करेंगे । ऐसा करना भट्टजी के साथ श्रन्याय होगा श्रौर उसका
पाप भागी मैं हुँगा । यह उसी प्रकार विफल होगा जेसे केवल विष्कम्भक
से भ्रभिज्ञान शाकुस्तल का मुल्यांकन करना अ्रथवा बुदबुद एवं तरंग से
समुद्र की कल्पना करना । “सामुद्रोहि तरंज्ः क्वचन समुद्रो न तारंज़ः'
समुद्र को समभने के लिये उसके गांर्भीय श्र मर्यादा का परिज्ञान श्राव-
दयक है । भट्टजी के उदात्त चरित्र, उनकी चौसुखी प्रतिभा, उनके श्रगाध
पाण्डित्य को समभने के लिए यह आवश्यक है कि उनके “हिन्दी प्रदीप” एवं
अ्रन्य कृतियों का गम्भीर अध्ययन किया जाय ।. तभी ये संस्मरण उन्हें
मु करने में समर्थ होंगे। खेद का विषय है कि इस समय “हिन्दी प्रदीप'
ऐसी निधि के सम्पूर्ण अंक किसी एक स्थान में उपलब्ध नहीं है । मैंने तो
इन संस्मरणों में एक स्थान पर कहा है कि यदि कोई व्यवित्त अथवा संस्था
इनके प्रकाशन का प्रबन्ध करे तो मैं उनके एकन्नीकरण का दायित्व श्रपने
ऊपर ले सकता हूँ ।
इन संस्मरणों को मैंने 'स्वान्त: सुखाय' लिखा है । लिखने में मैं सफल हो त
सका या नहीं “श्रापरितोषाद्विदुषां' कंसे कह सकता हूँ । परन्तु इतना कहना :
सम्भवतः: अ्रसंगत न होगा कि जब भट्टजी के सुपुत्र पं० जनादेन भट्टूजी ने
संस्मरणों को पढ़ा तो उन्होंने मुक्ते लिखा ' “* “इन संस्मरणों को पढ़ने से
अतीत के भ्रनेक हृदय श्रौर घटनायें जो विस्मृति के गर्भ में छिपी पड़ी थीं,
सहसा फिर जाग उठीं श्रौर चलचित्र के समान श्रांखों के सामने एक-
एककर नाच गयीं । संस्मरण में उल्लिखित भ्रनेक पात्र, जो समय के रंग-
मंच पर जीवन के नाटक में अपना-अपना पार्ट अ्रदा कर श्रन्तिम पटाक्षेप
के साथ सदा के लिये चले गये हैं, उनकी स्मृति ताजी हो गयी शभ्रौर सहसा
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